नक्षत्रपुरुष
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]नक्षत्रपुरुष संज्ञा पुं॰ [सं॰] एक कल्पित पुरुष जिसकी कल्पना भिन्न भिन्न नक्षत्रों को उसके भिन्न भिन्न अंग मानकर की जाती है । विशेष—बृहत्संहिता में लिखा है कि मूल नक्षत्र को नक्षत्रपुरुष के पाँव, रोहिणी और अश्विनी को जाँघ, पुर्वाषाढा ओर उत्तरा- षाढा को उरु, उत्तराफाल्गुनी और पूर्वाफाल्गुनी को गुह्य, कृत्तिका को कमर, उत्तराभाद्रपदा और पूर्वाभाद्रापदा को पार्श्व रेवती को कोख, अनुराधा को छाती, घनिष्ठा को पीठ, विशाखा को बाँह, हस्त को कर, पुनर्वसु को उंगलियाँ, अश्लेषा को नाखून, ज्येष्ठा को गरदन, श्रवण को कान, पुष्य को मुख, स्वाति को दाँत, शतभिषा को हास्य, मघा को नाक, मृगशिरा को आँख, चित्रा को ललाट, भरणी को सिर और आर्द्रा को बाल मानकर नक्षत्रपुरुष की कल्पना करनी चाहिए । वामन पुराण के अनुसार इसका व्रत सुंदरता प्राप्त करने के उद्देश्य से चैत्र के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को, जब चद्रमा मूल- नक्षत्रयुक्त हो, किया जाता है । व्रत के दिन विष्णु और नक्षत्रों की पूजा करके दिन भर उपवास करना चाहिए । नक्षत्रपुरुष के पौरेवाले नक्षत्र से आरंभ करके प्रतिमास हर एक अंग के नक्षत्र के नाम से भी करने का विधान है ।