नचीत पु वि॰ [हिं॰] दे॰ 'निश्चिंत' । उ॰—भक्तवछल को विरद सुनि रज्जब दीन्हो रोय । जब सुनियो पावन पतित रह्यो नचीतो सोय ।—राम॰ धर्म॰, पृ॰ २९७ ।