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नट

विक्षनरी से

प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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नट संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. दृश्य काव्य का अभिनय करनेवाला मनुष्य । वह जो नाट्य करता हो । नाट्यकला में प्रवीण पुरुष ।

२. प्राचीन काल की एक संकर जाति । विशेष—इसकी उत्पत्ति शौचकी स्त्री और शौंडिक पुरुष से मानी गई है और इसका काम गाना बजाना बतलाया गया है ।

३. मनु के अनुसार क्षत्रियों की एक जाति जिसकी उत्पत्ति ब्रात्य क्षत्रियों से मानी जाती है ।

४. पुराणानुसार एक संकर जाति जिसकी उत्पत्ति मालाकार पिता और शूद्रा माता से मानी जाती है ।

५. एक नीच जाति जो प्रायः गा बजाकर और तरह तरह के खेल तमाशे आदि करके अपना निर्वाह करती है । उ॰—दीठि बरत बाँधी अटनि चढ़ि धावत न डरात । इत उत तें मन दुहुन के नट लों आवत जात ।—बिहारी (शब्द॰) । विशेष—उत्तर प्रदेश में इस प्रकार के जो लोग पाए जाते हैं वे बाँसों पर तरह तरह की कसरतें करते और रस्सों पर अनेक प्रकार से चलते हैं । बंगाल में इस जाति के लोग प्रायः गाने बजाने का पेशा करते हैं ।

६. एक नाग का नाम । विशेष—इसे भट नामक एक दूसरे नाग के साथ मथुरा के निकट उरुमुंड नामक पर्वत पर बुद्धदेव ने बौद्धधर्म में दीक्षित किया था । इसने तथा भट ने उस स्थान पर दो बिहार भी बनावाए थे ।

७. संपूर्ण जाति का एक राग जिसमें सब शुद्ध स्वर लगते हैं । विशेष—कुछ आचार्य इसे मालकोश राग का और कुछ आचार्य इसे श्री राग का पुत्र मानते हैम । कुछ लोगों का मत है कि यह वागीश्वरी, मधुमाध और पूरिया के मेल से बना हुआ है और किसी के मत से कुमकुम, पूरबी, केदारा और बिलावल के मेल से बना हुआ संकर राग है । रागमाला में इसे राग नहीं बल्कि रागिनी माना है । एक और शास्त्रकार ने इसे दीपक राग की रागिनी बतलाया है । उनके मत से यह संपूर्ण जाति की रागिनी है और इस के गाने का समय तीसरा पहर और संध्या है । भिन्न भिन्न रागों के साथ इसे मिलाने से अने क संकर राग भी बनते है । जैसे, केदारनट, छायानट, कामोदनट आदि ।

८. अशोक वृक्ष ।

९. श्योनाक वृक्ष ।

१०. नर्तक (को॰) ।

११. एक प्रकार का वेतस या बेत (को॰) ।