नागार्जुन

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

नागार्जुन संज्ञा पुं॰ [सं॰] एक प्राचीन बौद्ध महात्मा या बोधिसत्व जो माध्यमिक शाखा के प्रवर्तक थे । विशेष— ऐसा लिखा है कि ये विदर्भ देश के ब्राह्मण थे । किसी किसी के मत से ये ईसा से सौ वर्ष पूर्व और किसी किसी के मत से ईसा से १५०-२०० वर्ष पीछे हुए थे । पर तिब्बत में लामा के पुस्तकालय में एक प्राचीन ग्रंथ मिला है जिसके अनसार पहला मत ही ठीक सिद्ध होता है । बौद्ध धर्म को दार्शनिक रूप पहले पहल नागार्जुन ही ने दिया, अतः इनके द्वारा सभ्य और पठित समाज में बौद्ध धर्म का जितना प्रचार हुआ उतना किसी के द्वारा नहीं । इनके दर्शन ग्रंथ का नाम माध्यमिक सूत्र है । इसके अतिरिक्त बौद्ध धर्म संबंधी इन्होंने और कई ग्रंथ लिखे । इन्होंने सात वर्ष तक सारे भारतवर्ष में उपदेश और शास्त्रार्थ करेक बहुत से लोगों को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया । अंत में ये भोजभद्र नामक प्रधान राजा को दस हजार ब्राह्मणों के सहित बौद्धधर्म में लाए । इनका दर्शन दो भागों में विभक्त है— एक संवृति सत्य दूसरा परमार्थ सत्य । संवृति सत्य में इन्होंने माया का मूल तथ्य निरूपित किया है और परमार्थ सत्य में यह प्रतिपादित किया है कि चिंतन और समाधि के द्वारा महात्मा को किस प्रकार जान सकते हैं । महात्मा को जान लेने पर माया दूर हो जाती है । माध्यमिक दर्शन का सिद्धांत यही है कि समाधारण नितिधर्म के पालन से ही प्राणी पुनर्जन्म से रहित नहीं हो सकता । निर्वाणप्राप्ति के लिये दानशील, शांति, वीर्य, समाधि और प्रज्ञा इन गुणों के द्वारा आत्मा को पूर्णत्व को पहुँचाना चाहिए । ये कहते थे कि विष्णु, शिव, काली, तारा, इत्यादि देवी देवताओं की उपासना सांसारिक उन्नति के लिये करनी चाहिए । नागार्जुन ने बौद्ध धर्म को जो रूप दिया वह 'महायन' कहलाया और उसका प्रचार बहुत शीघ्र हुआ । नैपाल, तिब्बत, चीन, तातार, जापान इत्यादि देशों में इसी शाखा के अनुयायी हैं । तांत्रिक बौद्ध धर्म का प्रवर्तक कुछ लोग नागर्जुन ही को मानते हैं । काश्मीर में बौद्धों का जो चौथा संघ हुआ था वह इन्होंने किया था । ये चिकित्सक भी अच्छे थे । चक्रपाणि पंडित (विक्रम सँबत् १००० के लगभग) ने अपने चिकित्सासंग्रह में नागार्जुन कृत नागार्जुनाजन और नागार्जुनयोग नामक औषधों का उल्लेख किया है । चक्रपाणि ने लिखा है कि पाटलिपुत्र नगर में उन्हें ये दोनों नुसखे पत्थर पर खुदे मिले थे । ऐसा प्रसिद्ध है कि ये पत्थरों पर इस प्रकार के नुसखे खुदवाकर उन्हें स्थान स्थान पर गड़वा देते थे । कक्षपूट, कौतूहल- चिंतामणि, योगरत्नमाला । योगरत्नावली और नागार्जुनीय (चिकित्सा) ये और ग्रंथ इनकै नाम से प्रसिद्ध हैं । रस चिकित्सा पद्धति को इन्होंने प्रचारित किया ।