नायिका

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

नायिका संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] नागिन

१. रूप-गुण-संपन्न स्त्री । वह स्त्री जो श्रृंगार रस का आलँबन हो अथवा किसा काव्य, नाटक आदि में जिसके चरित्र का वर्णन हो । विशेष—श्रृंगार में प्रकृति के अनुसार नायिकाओं के तीन भेद बतलाए गए हैं—उत्तमा, मध्यमा, और अधमा । प्रिय के अहितकारी होने पर भी हितकारिणी स्त्री को उत्तमा प्रिय के हित या अहित करने पर हित या अहित करनेवाली स्त्री को मध्यमा और प्रिय के हितकारी होने पर भी अहितकारिणी स्त्री को अधमा कहते हैं । धर्मानुसार इनके तीन भेद हैं— स्वकीया, परकीया और सामान्य । अपने ही पति में अनुराग रखनेवाली स्त्री को स्वीया या स्वकीया, परपुरुष में प्रेंम रखनेवाली स्त्री को परकीया या अन्या और धन के लिये प्रेम करनेवाली स्त्री को सामान्य साधारण या गणिका कहेत हैं । वयःक्रमानुसार स्वकीया तीन प्रकार की मानी गई हैं—मुग्धा, मध्या और प्रौढ़ा । कामचेष्टारहित अंकुरितयौवना को मुग्धा कहते हैं जो दो प्रकार की कही गई है—अज्ञातयोवना और ज्ञातयौवना । ज्ञातयौवना के भी दो भेद भेद किए गए हैं—नवोढ़ा जो लज्जा और भय से पतिसमागम की इच्छा न करे ओर विश्रब्धनवोढ़ा जिसे कुछ अनुराग और विश्वास पति पर हो । अवस्था के कारण जिस नायिका में लज्जा और कामवासना समान हो उसे मध्या कहते हैं । कामकला मे पूर्ण रूप से कुशल स्त्री कौ प्रौढ़ा कहते हैं । इनमें से मध्या और मुग्धा ये दो भेद केवल स्वकीया में ही माने गए है, फिर मध्या और प्रौढ़ा के घीरा, अधीरा और धीराधीरा ये तीन भेद किए गए हैं । प्रिय में परस्त्रीसमागत के चिह्न देख धैर्यसहित सादर कोप प्रकट करनेवाली स्त्री को धीरा, प्रत्यक्ष कोप करनेवाली स्त्री को अधीरा तथा कुछ गुप्त और कुछ प्रकट कोप करनेवाली स्त्री को धीराधीरा कहते हैं । परकीया के प्रथम दो भेद किए गए हैं—ऊढ़ा और अनूढ़ा । विवाहिता स्त्री यदि परपुरुष में अनुरक्त हो तो उसे ऊढ़ा या परोढा और अविवाहिता स्त्री यदि अनुरक्त हो तो उसे अनूढ़ा या कन्यका कहते हैं । इसके अतिरिक्त व्यापारभेद से भी कई भेद किए गए है—जैसे, गुप्ता, विदग्धा, लक्षिता इत्यादि । नायिकाओं के अट्ठाईस अलंकार कहे गए हैं । इनमें हाव भाव और हेला ये तीन अंगज कहलाते हैं । शोभा, कांति दीप्ति, माधुर्य, प्रगल्भता, औदार्य और धैर्य से सात अयलसिद्ध कहे जाते हैं । लीला, विलास, विच्छित्ति, विच्वोक, किल- किंचित, मोट्टायित, कुट्टमित, विभ्रम, लिलत मद, विकृत, तपन, मौग्ध, विक्षेप, कुतूहल, हसित, चकित और केलि ये अठारह स्वभावज कहलाते हैं ।

२. पुराणानुसार दुर्गा की शक्ति । दे॰ 'अष्टनायिका' (को॰) ।

३. स्त्री । पत्नी (को॰) । गोपी| अहीर या गुर्जर जाति कि स्त्री|

४. एक प्रकार की कस्तूरी (को॰) ।