नाल

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

नाल ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. कमल, कुमुद, आदि फूलों की पोलो लंबी डंडी । डांड़ी ।

२. पौधे का डंठल । कांड ।

३. गेहूँ, जो आदि की पतली लंबी डंडी जिसमें बाल लगती है ।

४. नली । नल ।

५. बंदुक की नली । बंदुक के आगे निकला हुआ पोला डंडा ।

६. सुनारों की फुँकनी ।

७. जुलाहों की नली जिसमें वे सूत लपेटकर रखते हैं । छूँछा । कैंडा । छुज्जा ।

८. वह रेशा जो कलम बनाते समय छिलने पर निकलता है । विशेष—डंठल या डंडी के अर्थ में पूरब में इसे पुं॰ बोलते हैं । पुरानी कविताओं में भी प्रायः पुं॰ मिलता है ।

नाल ^२ संज्ञा पुं॰

१. रक्त की नालियों तथा एक प्रकार के मज्जातंतु से बनी हुई रस्सी के आकार की वस्तु जो एक ओर तो गर्भस्थ बच्चे की नाभि से और दूसरी ओर गोल थाली के आकार में फैलकर गर्भाशय की दीवार से मली होती है । आँवल नाल । उल्लनाल । नार । नार । विशेष—इसी नाल के द्वारा गर्भस्थ शिशु माता के गर्भ से जुड़ा रहता है । गर्भाशय की दीवार से लगा हुआ जो उभरा हुई थाली की तरह का गोल छत्ता होता है उसमें बहुत सी रक्तवाहिनी नसें होती हैं जो चारों ओर से अनेक शाखा प्रशाखाओं में आकार छत्ते के केंद्र पर मिलती हैं जहाँ से नाल शिशु की नाभि की ओर गया रहता है । इस छत्ते और नाल के द्वार माता के रक्त के योजक द्रव्य शिशु के शरीर में आते जाते रहते हैं, जिससे शिशु के शरीर में रक्तसंचार, श्वास प्रश्वास और पोषण की क्रिया का साधन होता है । यह नाल पिंडल जीवों ही में होता है इसी से वे जरायुज कहलाते हैं । मनुष्यों में बच्चा उत्पन्न होने पर यह काटकर अलग कर दिया जाता है । क्रि॰ प्र॰—काटना । मुहा॰—क्या किसी का नाल काटा है ? = क्या किसी की दाई है । क्या किसी को जनानेवाली है । क्या किसी की बड़ी बूढ़ी है । जैसे,—क्या तूने ही नाल काटा है ? (स्त्रि॰) । कहीं पर नाल गड़ना =(१) कोई स्थान जन्मस्थान के समान प्रिय होना । किसी स्थान से बहुत प्रेम होना, जल्दी न हटना । (२) किसी स्थान पर अधिकार होना । दावा होना । जैसे,—यहाँ क्या तेरा नाल गड़ा है? नाल छीनना= नाल काटना ।

२. लिंग ।

३. हरताल ।

४. जल बहने का स्थान ।

५. जल में होनेवाला एक पौधा ।

६. एक प्रकार का बाँस जो हिमालय के पूर्वभाग, आसाम और बरमा आदि में होता है । टोली । फफोल ।

नाल ^३ संज्ञा पुं॰ [अ॰ नाल]

१. लोहे का वह अर्धचंद्राकार खंड जिसे घोड़ो की टाप के नीचे या जूतों की एड़ी के नीचे रगड़ से बचाने के लिये जड़ते हैं । क्रि॰ प्र॰—जड़ना ।—बाँधना ।

२. तलवार आदि के म्यान की साप जो नोक पर मढ़ी होती है ।

३. कुंडलाकार गढ़ा हुई पत्थर का भारी टुकड़ा जिसके बीचोबीच पकड़कर उठाने के लिये एक दस्ता रहता है । इसे बलपरीक्षा या अभ्यास के लिये कसरत करनेवाले उठाते हैं । क्रि॰ प्र॰—उठाना ।

४. लकड़ी का वह चक्कर जिसे नीचे डालकर कुएँ की जोड़ाई होती है ।

५. वह रुपया जिस जुआरी जुए का अड्डा रखनेवाले को देता है ।

६. जुए का अड्डा । क्रि॰ प्र॰—रखना ।

६. † पर्वत की घाटी । उ॰—नाल वपत कुरमालरी, आयो भाल जवन्न ।—रा॰ रू॰, पृ॰ ३४० ।