निगमन

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

निगमन संज्ञा पुं॰ [सं॰] न्याय में अनुमान के पाँच अवयवों में से एक । हेतु, डदाहरण ओर उपनय के उपरांत प्रतिज्ञा तो सिद्ध सूचित करने के लिय़े उसका फिर से कथन । सबित की जानेवाला बात साबित हो गई, यह जताने के लिये दलील वगैरह के पीछे उस बात को फिर कहना । नतीजा । जैसे, 'यहाँ पर आग है' (प्रतिज्ञा) । 'क्योंकि यहाँ पर धूआँ है (हेतु) । जहाँ धूँआ रहता है वहाँ आग रहती है' (उपनय) । इसलिये यहाँ पर आग है' (निगमन) । विशेष— प्रशस्तपाद के भाष्य में 'निगमन' को प्रात्याम्नाय भी कहा है ।

२. जाना । भीतर जाना (को॰)

३. वेद का उद्धारण (को॰) ।