निज

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

निज ^१ वि॰ [सं॰]

१. अपना । स्वीय । स्वकीय । पराया नहीं । विशेष— आजकल इस शब्द का प्रयोग प्राय़ः 'का' विभक्ति के साथ होता है, जैसे, निज का काम । कर्म की विभक्ति भी इसके साथ लगती है; जैसे, निज को, निजहि । कविता में और विभक्तियाँ भी दिखाई देती है पर कम । मुहा॰— निज का = खास अपना । अपने शरीर, जन या कुटुंब से संबंध रखनेवाला ।

२. खास । मुख्य । प्रधान । उ॰— (क) परम चतुर निज दास श्याम के संतत निकट रहत हौ । जल बूड़त अवलंब फेन को फिरि फिरि कहा गहत हौ । —सूर (शब्द॰) (ख) कह मारुतसुत सुनह प्रभु ससि तुम्हार निज दास ।—तुलसी (शब्द॰) ।

३. ठीक । सही वास्तविक । सच्चा । यथार्थ । उ॰— (क) अब बिनती मन सुनहु शिव जो मोपर निज नेह । —तुलसी (शब्द॰) । (ख) मन मेरो मानै सिख मेरी । जौ निज भक्ति चहै हरि केरी ।—तुलसी (शब्द॰) ।

निज ^२ अव्य॰

१. निश्चय । ठीक ठीक । सही सही । सटीक । मुहा॰— निज करके = बीस बिस्वे । निश्चय । अवश्य । जरूर ।

२. खासकर । विशेष करके । मुख्यतः उ॰— देखु विचारि सार का साँची, कहा निगम निज गायो ।—तुलसी (शब्द॰) ।