निद्रा

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

निद्रा संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] सचेष्ट अवस्था के बीच बीच में होनेवाली प्राणियों की वहर विश्चेष्ट अवस्था जिसमें उनकी चेतन वृत्तियाँ (और कुछ अचेतन वृत्तियाँ भी) रुकी रहती हैं । नींद । स्वप्न । सुप्ति । विशेष—गहरी निद्रा की अवस्था में मनुष्य की पेशियाँ ढीली हो जाती हैं, नाड़ी की गति कुछ मंद हो जाती है, साँस कुछ गहरी हो जाती है और कुछ अधिक अंतर देकर आती जाती है, साधारण संपर्क से ज्ञानेद्रिंय में संवेदन और कर्मद्रियों में प्रतिक्रिया नहीं होती; तथा आँतों के जिस प्रवाहवत् चलनेवाले आकुंचन से उनके भीतर का द्रव्य आगे खिसकता है उसकी चाल भी धीमी हो जाती है । निद्रा के समय मस्तिष्क या अंतःकरण विश्राम करता है जिससे प्राणी निःसंज्ञ या अतेचन अवस्था में रहता है । निद्रा के संमंध में सबसे अधिक माना जानेवाला वैज्ञानिक मत यह है कि निद्रा मस्तिष्क में कम रक्त पहुँचने के कारण आती है । निद्रा के समय मस्तिष्क में रक्त की कमी हो जाती है, यह बात तो देखी गई है । बहुत छोटे बच्चों के सिर के बीच जो पुलपुला भाग होता है वह उनके सो जाने पर कुछ अधिक धँसा मालूम होता है । यदि वह नाड़ी जो हृदय से मस्तिष्क में रुधिर पहुँचाती हैं, दबाई जाय तो निद्रा या बेहोशी आवेगी । निद्रा की अवस्था में मस्तिष्क में रक्त की कमी का होना तो ठीक है, पर यह नहीं कह जा सकता कि इस कमी के कारण निद्रा आती है या निद्रा (मस्तिष्क की निष्क्रियता) के कारण यह कमी होती है । हाल के दो वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है कि निद्रा संवेदसुत्रों या ज्ञानतंतुओं के घटकों (सेल्स) के संयोग तोड़ने से आती है । संवेदनसुत्र अनेक सुक्ष्म घटकों के योग से बने होते हैं और मस्तिष्करुपी केंद्र मे जाकर मिलते हैं । जाग्रत या सचेष्ट अवस्था में ये सब घटक अत्यंत सुक्ष्म सुत की सी उँगलियाँ निकालकर एक दुसरे से जुड़े हुए मस्तिष्टघटकों के साथ संबंध जोड़े रहते हैं । जब घटक श्रांत हो जाते हैं तब उंगलियाँ भीतर सिमट जाती हैं और मस्तिष्क का संबंध संवेदनसुत्रों से टुट जाता है जिससे तंद्रा या निद्रा आती है । एक और दुसरे वैज्ञानिक का यह कहना है कि मास्तिष्क के घटक दिन के समय जितना अधिक और जितनी जल्दी जल्दी प्राणद वायु (आक्सीजन) खर्च करते हैं उतनी उन्हें फेफड़ों से मिल नहीं सकती । अतः जब प्राणद वायु का अभाव एक विशेष मात्रा तक पहुँच जाता है तब मस्तिष्कधटक शिथिल होकर निष्क्रिय हो जाते हैं । सोने की दशा में आमदानी की अपेक्षा प्राणदवायु का खर्च बहुत कम हो जाता है जिससे उसकी कमी पुरी हो जाती है अर्थात् चेतना के लिये जितनी प्राणदवायु की जरुरत होती है उनती या उससे अधिक फिर हो जाती है और मनुष्य जाग पड़ता है । इतना तो सर्वसम्मत है कि निद्रा की अवस्था में शरीर पोषण करनेवाली क्रियाएँ क्षय करनेवाली कियाओं की अपेक्षा अधिक होती हैं । निद्रा के संबंध में यह ठीक ठीक नहीं ज्ञात होता कि विकास की किस श्रीणी के जीवों से नियमपुर्वक सोने की आदत शुरु होती है । स्तनपायी उष्णरक्त जीवों तथा पक्षियों से नीचे की कोटि के जीवों के यथार्थ रीति से सोने का कोई पक्का प्रमाण नहीं मिलता । मछली, साँप, कछुए आदि ठढे रक्त के जीवों की आँखों पर हिलनेवालो पलके तो होती नहीं कि उनके आँख मुँदने से उनके सोने का अनुमान कर सकें । मछिलियाँ घटों निश्चेष्टा अवस्था में पड़ी पाई गाई हैं पर उनकी यह अवस्था नियमति रुप से हुआ करती है, यह नहीं कहा जा सकता । पातंजल योगदर्शन के अनुसार निद्रा भी एक मनोवृत्ति है, जिसका आलंबन अभावप्रत्यय अर्थात् तमोगुण है । अभाव से तात्पर्य शेष वृत्तियों का अभाव है, जिसका प्रत्यय या कारण हुआ तमोगुण । सारांश थह है कि तमोगुण की अधिकता से सब विषयों को छोड़कर जो वृत्ति रहती है वह निद्रा है । निद्रा मन की एक क्रिया या वृत्ति है, इसके प्रमाण में भोज- वृत्ति में यह लिखा है कि 'मैं खुब सुख से सोया' । ऐसी स्मृति लोगों को जागने पर होती है और स्मृति उसी बात की होगी जिसका अनुभव हुआ होगा । यौ॰—निद्रादरिद्र = जिसे नींद न आती हो । निद्राभंग जागरण । निद्रावृक्ष = अँधेरा । अंधकार ।