निपात
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]निपात ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. पतन । गिरावा । पात ।
२. अधःपतन ।
३. विनाश । उ॰—और न कुछ देखै तन श्यामहि ताको करो निपातु । तु जो करै बात सोइ साँची कहा करों तोहि मातु ।—सूर (शब्द॰) ।
४. मृत्यु । क्षय । नाश । उ॰—बनमाला पहिरावत श्यामहि बार बार अंकवारि भरी धरि । कंस निपात करहुगे तुमही हम जानी यह बात सही परि ।—सूर (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—करना ।—होना ।
५. शाब्दिकों के मत से वह शब्द जिसके बनने के नियम का पता न चले अर्थात् जो व्याकरण में दिए गए सामान्य नियमों के अनुसार निष्पन्न न होकर अव्युत्पन्न बना हो ।
६. दुसरा सिरा । दुसरा भाग (को॰) ।
निपात पु ^२ वि॰ [हिं॰ नि + पात(= पता)]
१. बिना पत्तों का । जिसमें पत्ते न हों । उ॰—साँठहिं रहैं, साधि तन, निसँठहि आगरि भुख । बिनु गथ बिरिंछ निपात जिमि ठाढ़ ठाढ़ पै सुख ।—जायसी (शब्द॰) ।
२. पंख रहित । बिना पंख का । उ॰—जेहि पंखी के निअर होइ कहै बिरह कै बात । सोई पंखी जाइ जरि, आखिर होइ निपात ।—जायसी (शब्द॰) ।
निपात ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰] कौटिल्य के अनुसार नहाने का स्थान ।