निमि

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

निमि संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. महाभारत के अनुसार एक ऋषि जो दत्तात्रेय के पुत्र थे ।

२. राजा इक्ष्वाकु के एक पुत्र का नाम । इन्हीं से मिथिला का विदेह वंश चला । उ॰—भए विलोचन चारु अचंचल । मनहु सकुचि निमि तजे द्दगंचल ।—तुलसी (शब्द॰) । विशेष—पुराणों में लिखा है कि एक बार महाराज निमि ने सहस्रवार्षिक यज्ञ कराने के लिये वशिष्ठ जी को बुलाया । वशिष्ठ जी ने कहा मुझे देवराज इंद्र पहले से हो पंचशत वार्षिक यज्ञ में वरण कर चुके है । उनका यज्ञ कराके में आपका यज्ञ करा सकूँगा । वशिष्ठ के चले जाने पर निमि ने गोतमादि ऋषियों को बुलाकर यज्ञ करना प्रारभ किया इंद्र का यज्ञ हो जाने पर जब वशिष्ठ जी देवलोक से आए तब उन्हें मालूम हुआ कि निमि गौतम को बुलाकर यज्ञ कर रहे हैं । वशिष्ठ जी ने निमि के यज्ञमंडप में पहुँचकर राजा निमि को शाप दिया कि तुम्हारा यह शरीर न रहेगा । वसिष्ठ के शाप देने पर राजा ने भी वशिष्ठ को शाप दिया कि आपका भी शरीर न रहेगा । दोनों का शरीर छूट गया । वशिष्ठ जी तो अपना शरीर छोड़कर मित्रावरुण के वीर्य से उप्तन्न हुए । यज्ञ की समाप्ति पर देवताओं ने निमि को फिर उसी शरीर में रखकर अमर कर देना चाहा पर राजा निमि ने अपने छोड़े हुए शरीर में जाना नहीं चाहा ओर देवताओं सें कहा कि शरीर के त्यागने में मुझे बड़ा दुःख हुआ है, मैं फिर शरीर नहीं चाहता । देवताओं ने उसकी प्रार्थना स्वीकार की और उसको मनुष्यों की आँखों की पलक पर जगह दी । उसी समय से निमि विदेह कहलाए और उनके वंशवाले भी इसी नाम से प्रसिद्ब हुए ।

३. आँखों का मिचना । निमेष ।