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निषाद

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प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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निषाद संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. एक बहुत पुरानी अनार्य जाति जो भारत में आर्य जाति के आने से पहले निवास करती थी । इस जाति के लोग शिकार खेलते, मछलियाँ मारते और डाका डालते थे । विशेष—पुराणों में जिस प्रकार और अनेक अनार्य जातियों की उत्पत्ति के संबंध में अनेक प्रकार की कथाएँ लिखी हुई हैं उसी प्रकार इस जाति की उत्पात्ति के संबंध में भी एक कथा है । अग्निपुराण में लिखा है कि जिस समय राजा वेणु की जाँघ मथी गई थी उस समय उसमें से काले रंग का एक छोटा सा आदमी निकला था । वही आदमी इस वंश का आ पुरुष था । लेकिन मनु के मत से इस जाति की सृष्टि ब्राह्मण पिता और शूद्रा माता से हु ई है । मिताक्षरा में यह जाति क्रूर और पापी कही गई है ।

२. एक देश का प्राचीन नाम जिसका उल्लेख महाभारत, रामायण तथा कई पुराणों में है । विशेष—महाभारत के अनुसार यह एक छोटा राष्ट्र था जो विनशान के दक्षिणपश्चिम में था । संभवतः रामायणवाला श्रृगवेरपुर इस राज्य का राज्यनगर था ।

३. संगीत के सात स्वरों में अंतिम और सबसे ऊँचा स्वर जिसका संक्षिप्त रूप 'नि' है । विशेष—इसकी दो श्रुतियाँ हैं—उग्रता और शोभिनी । नारद के अनुसार यह स्वर हाथी के स्वर के समान है और इसका उच्चारणस्थान ललाट है । व्याकरण के अनुसार यह दंत्य है । संगीतदर्पण के अनुसार इस स्वर की उत्पत्ति असुर वंश में हुई है । इसकी जाति वेश्य, वर्णा विचित्र, जन्म पुष्कर द्वीप में, ऋषि तुंबरु, देवता सूर्य और छंद जगती है । यह संपूर्ण जाति का स्वर है । और करुण इसके लिये विशेष उपयोगी हैं । इसकी फूट तान ५०४० हैं । इसका वार शनिवार और समय रात्री के अंत की २ घड़ी ३४ पल है । इसका स्वरूप गणेश जी के समान माना जाता है ।