निहोरा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]निहोरा ^१ † संज्ञा पुं॰ [सं॰ मनोहार, हिं॰ मनुहार]
१. अनुग्रह । एहसान । कृतज्ञता । उपकार । उ॰—(क) क्या काशी क्या ऊसर मगहर हृदय राम बस मोरा । जो काशी तन तजै कबीरा रामहिं कौन निहोरा ? —कबीर (शब्द॰) । (ख) सो कछु देव न मोहिं निहोरा । निज पन राखेहू जन मन चोरा ।— तुलसी (शब्द॰) । (ग) कहा दाता जो द्रवै न दीनहिं देख ि दुखित कलिकाल । सूर स्याम को कहा निहोरो चलत बेद की चाल ।—सूर (शब्द॰) ।
२. बिनती । प्रार्थना । उ॰—(क) मैं आपनि दिसि कीन निहोरा । तिन्ह निज ओर न लाउब भोरा ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) चितै रघुनाथ बदन की ओर । रघुपति सो अब नेम हमारो विधे सों करति निहोर ।—सूर (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—करना ।
३. भरोसा । आसरा । आश्रय । आधार । उ॰—रात दिवस निरभय जिय मोरे । लग्यों निहोर कंत जो तोरे ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) नाक सँवारत आयो हौं गाकहिं नाहीं पिनाकहि नेकु निहोरो ।—तुलसी (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—लगना ।
निहोरा † ^२ क्रि॰ वि॰
१. निहोरे से । कारण से । बदौलत । द्वारा । उ॰—(क) तुम सारिखे संत प्रिय मोरे । धरउँ देह नहिं आन निहोरे ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) तजउँ प्राण रघुनाथ निहोरे । दुहूँ हाथ मुद मोदक मेरे ।—तुलसी (शब्द॰) ।
२. के लिये । वास्ते । निमित्त । उ॰—तुम बसीठ राजा की ओरा । साख होहु यहि भीख निहोरा ।—जायसी (शब्द॰) ।