नीति

विक्षनरी से

हिन्दी

शब्द

किसी कार्य को कैसे करना है, वह नीति ही तय करती है।

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

नीति संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. ले जाने या ले चलने की क्रिया, भाव या ढंग ।

२. व्यवहार की रीति । आचारपद्धति । जैसे, सुनीति, दुर्नीति ।

३. व्यवहार की वह रीति जिससे अपना कल्याण हो और समाज को भो कोई बाधा न पहुँचे । वह चाल जिसे चलने से अपनी भलाई, प्रतिष्ठा आदि हो और दूसरे की कोई बुराई न हो । जैसे,—जाकी घन धरती हरी ताहि न लीजै संग । साई तहाँ न बैठिए जहँ कोउ देय उठाय ।—गिरिधर (शब्द॰) ।

४. लोक या समाज के कल्याण के लिये उचित ठहराया हुआ आचार व्यवहार । लोकमर्यादा के अनुसार व्यवहार । सदाचार । अच्छी चाल । नय । उ॰—सुनि मुनीस कह वचन सप्रीती । कस न राम राखहु तुम नीती ।—तुलसी (शब्द॰) ।

५. राजा और प्रजा की रक्षा के लिये निर्धारित व्यवस्था । राज्य की रक्षा के लिये ठहराई हुई विधि । राजा का कर्तव्य । राजविद्या । विशेष—महाभारत में भीष्म ने युधिष्ठिर को नीतिशास्त्र की शिक्षा दी है जिसमें प्रजा के लिये कृषि, वाणिज्य आदि की व्यवस्था, अपराधियों को दंड, अमात्य, चर, गुप्तचर, सेना, सेनापति इत्यादि की नियुक्ति, दुष्टों का दमन, राष्ट्र, दुर्ग और कोश की रक्षा, धनिकों की देखरेख, दरिद्रों का भरण पोषण, युद्ध, शत्रुऔं को वश में करने के साम, दाम, दंड, भेद ये चार उपाय, साधुओं की पूजा, विद्वानों का आदर, समाज और उत्सव, सभा, व्यवहार तथा इसी प्रकार की और बहुत सी बातें आई हैं । नीति विषय पर कई प्राचीन पुस्तकें हैं । जैसे, उशना को शुक्रनीति, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, कामंदकीय नीतिसार इत्यादि ।

६. राज्य की रक्षा के लिये काम में लाई जानेवाली युक्ति । राजाओं की चाल जो वे राज्य की प्राप्ति वा रक्षा के लिये चलते हैं । पालिसी । जैसे, मुद्राराक्षस नाटक में चाणक्य और राक्षस की नीति ।

७. किसी कार्य की सिद्धि के लिये चली जानेवाली चाल । युक्ति । उपाय । हिकमत ।

८. संबंध (को॰) ।

९. दान । प्रदान (को॰) । यौ॰—नीतिकुशल = नीतिज्ञ । नीतिघोष = बृहस्पति के रथ का नाम । नीतिदोष = आचारदोष । नीतिनिपुण, नीतिनिष्ण = नीतिज्ञ । नीतिबीज = कूट संकल्प का मूल । नीतिविज्ञान = दे॰ 'नीतिशास्त्र' । नीतिविद् = राजनीतिज्ञ । बुद्धिमान् । नीति विद्या = राजनीति शास्त्र । नीतिशास्त्र । नीतिविषय = आचरण का विषय या क्षेत्र । नीतिशतक = भर्तृहरि द्वारा रचित नीति बिषयक १०० श्लोक ।

नीति अनीति का वे बहुत कम विचार करते हैं । पठान प्राय: लंबे चौड़े, डील डौलवाले, गोरे और क्रूराकृति होते हैं । जातिबंधन इनमें विशेष दृढ़ है । एक संप्रदाय के पठान का दूसरे में ब्याह नहीं हो सकता । स्त्रियों को सतीत्वरक्षा का इन्हें बहुत ज्यादा ख्याल रहता है । इनके आपस के अधिकांश झगड़े स्त्रियों ही के लिये होते हैं । इनके उत्तराधिकार आदि के झगड़े कुरान के अनुसार नहीं, वरन् रूढ़ियों के अनुसार फैसल होते हैं, जो भिन्न भिन्न संप्रदायों में भिन्न भिन्न हैं । पठानों का प्राचीन इतिहास अनिश्चयात्मक है । पर इसमें कोई संदेह नही कि अधिकांश उन हिंदुओं के वंशज हैं जो गांधार, कांबोज, वाह्लीक आदि में रहते थे । फारस के मुसलमान होने के बाद इन स्थानों के निवासी क्रमश: मुसलमान हुए । इनमें से अधिकांश राजपूत क्षत्रिय थे । परमार आदि बहुत से राजपूत वंश अपनी कई शाखाओं को सिंधपार बसनेवाले पठानें में बतलाते हैं । पुर्वज कहाँ से आए और कौन थे, इस विषय में कोई कल्पना अधिक साधार नहीं है । इनकी भाषा 'पश्तो' आर्य प्राकृत ही से निकली है । पीछे तुर्क और यहूदी जातियाँ भी अफगनिस्तान में आकार बस गई और पुराने पठानों से इस प्रकार हील मिल गई कि अब किसी पठान का वंश निश्चय करना प्राय: असंभव हो गया है । पठान शब्द की व्युत्पत्ति भी अनिश्चयात्मक है । इस विषय में अधिक ग्राह्वा कल्पना यह है कि पहले पहल अफगानिस्तान के 'पुख्ताना' स्थान में बसने के कारण इस जाति को 'पुख्तून' और इसकी भाषा को 'पुख्तू' कहते थे । फिर क्रमश: जाति को पठान और भाषा को पश्तो कहने लगे ।