नीबू

विक्षनरी से
नीबू

हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

नीबू संज्ञा पुं॰ [सं॰ निम्बूक, आ॰ लीमूँ] मध्यम आकार का एक पेड़ या झाड़ जिसका फल भी नीबू कहा जाता और खाया जाता है ओर जो पृथ्वी के गरम प्रदेशों में होता है । विशेष—इसकी पत्तियाँ मोटे दल की और दोनों छोरों पर नुकीली होतो हैं, तथा उनके ऊपर का रंग बहुत गहरा हरा और नीचे का हलका होता है । पत्तियों की लंबाई तीन अंगुल से अधिक नहीं होती । फूल छोटे छोटे और सफेद होते हैं जिनमें बहुत से परागकेसर होते हैं । फल गोल या लंबोतरे तथा सुगंधयुक्त होते हैं । साधारण नीबू स्वाद में खट्टे होते हैं और खटाई के लिये ही खाए जाते हैं । मीठे नीबू भी कई प्रकार के होते हैं । उनमें से जिनका छिलका नरम होता है और बहुत जल्दी उतर जाता है तथा जिनके रसकोश की फाँकें अलग हो जाती हैं वे नारंगी के अंतर्गत गिने जाते हैं । साधारणतः नीबू शब्द ते खट्टे नीबू का ही बोध होता है । उत्तरीय भारत में नीबू दो बार फलता है । बरसात के अंत में, और जाड़े (अगहन, पूस) में । अचार के लिये जाड़े का ही नीबू अच्छा समझा जाता है क्योंकि यह बहुत दिनों तक रह सकता है । खट्टे नीबू के मुख्य भेद ये हैं—कागजी (पतले चिकने छिलके का गोल और लंबोतरा), जंबीरी (कड़े मोटे खुरदरे छिलके का), बिजोरा (बड़े मोटे और ढोले छिलके का), चकोतरा (बहुत बड़ा खरबूजे सा, मोटे और कड़े छलके का) । पैबंद द्वारा इनमें से कई के मीठे भेद भी उत्पन्न किए जाते हैं; जैसे, कवले या संतरे का पेबद खट्टे चकोतरे पर लगाने से मीठा चकोतरा होता है । आजकल नीबू की अनेक जातिगाँ चीन, भारत, फारस, अरब तथा योरप और अमेरिका के दक्षिणी भागों में लगाई जाती हैं । खट्टा नीबू हिंदुस्तान में कई जगह (कुमाऊँ, चटगाँव आदि) जगली भी होता है जिससे सिद्ध होता है कि यह भारतवर्ष से पहले पहल और देशों में फैला । मोठे नीबू या नारंगी का उत्पत्तिस्थान चीन बतलाया जाता है । चीन और भारत के प्राचीन ग्रंथों में नीबू का उल्लेख बराबर मिलता है । फारस और अरब के व्यापारियों द्वारा यह यूनान, इटली आदि पश्चिम के देशों में गया । प्राचीन रोमन लोगों को यह फल बहुत दिनों तक बाहरी व्यापारियों से मिलता रहा और वे इसका व्यवहार सुगंध के लिये तथा कपड़ों को कीड़ों से बचाने के लिये करते थे । मीठे नीबू या नारंगियों का प्रचार तो योरप में और भी पीछे हुआ । पहले पहल ईसा की तेरहदी शताब्दी में रोम नगर में नारंगी के लगाए जाने का उल्लेख मिलता है । पीछे पुर्तगाल आदि देशों में नारगी की बहुत उन्नति हुई । सुश्रुक में जंबीर, नारंग, ऐरावत और दंतशठ ये चार प्रकार के नीबू आए हैं । ऐरावत और दंतशठ दोनों अम्ल कहे गए हैं । जंबीर तो खट्टा है ही । राजनिघट्ट में ऐरावत नारंग का पर्याय लिखा गया है जो सुश्रुत के अनुसार ठीक नहीं जान पड़ता । शायद नागरंग शब्द के कारण ऐसा हुआ है । 'नाग' का अर्थ सिंदुर न लेकर हाथी लिया और ऐरावत को नागरंग का पर्याय मान लिया । तैलग भाषा में चकोतरे को गजनिंबू कहते हैं अतः ऐरावत वही हो सकता है । भावप्रकाश में बीजपूर (बिजौरा) मघुककंटी (चकोतरा), जंबीर (खट्टा नीबू) और निबूक (कागजी नीबू) ये चार प्रकार के नीबू कहे गए हैं । सुश्रुत में जबीर और दतशठ अलग है पर भावप्रकाश में वे एक दूसरे के पर्याय हैं । राजवल्लभ में लिंपाक और मधुकुक्कुटिका ये दो भेद जंबीरी के कहे गए हैं । उसी ग्रंथ में करण वा कन्ना नीबू का भी उल्लेख है । नीचे वैद्यक में आए हुए नीबूओं के नाम दिए जाते हैं— (१) निंबूक (कागजी नीबू) । (२) जंबीर (जंबीरी नीबू, खट्टा नीबू या गलगल)—(क) बृहज्जंबीर, (ख) लिंपाक, (ग) मधुकुक्कुटिका (मीठा जंबीरी या शरबती नीबू) । (३) बीजपूर (बिजौरा) । पर्याय—मातुलुंग, रुचक, फलपूरक, अम्लकेशर, बीजपूर्ण, सुकेशर, बीजक, बीजफलक, जंतुघ्न, दंतुरच्छद, पूरक, रोचनफल । (क) मधुर मातुलुंग या मीठा बिजौरा । इसे संस्कृत में मधुकर्कटिका और हिंदी में चकोतरा कहते हैं । (४) करण या कन्ना नीबू—इसे पहाड़ी नीबू भी कहते हैं—इसे अरबी में कलंबक कहते हैं । निबू या निबूक शब्द सुश्रुत आदि प्राचीन ग्रंथों में नहीं आया है, इससे विद्वानों का अनुमान है कि यह अरबी लीमूँ शब्द का अपभ्रंश है । 'संतरा' शब्द के विषय में डा॰ हंटर का अनुमान है कि यह 'सिट्रा' शब्द से बना है जो पुर्तगाल में एक स्थान का नाम है । पर बाबर ने अपनी पुस्तक में 'संगतरा' का उल्लेख किया हैं, इससे इस विषय में कुछ ठीक नहीं कहा जा सकता । मुहा॰—नीबू निचोड़ = थोड़ा सा कुछ देकर बहुत सी चोजों में साझा करनेवाला । थोड़ा सा संबंध जोड़कर बहुत कुछ लाभ उठानेवाला । नीबू चटाना या नीबू नमक चटाना = निराश करना । ठेंगा दिखाना । विशेष—कहते हैं कि किसी सराय में एक मियाँ साहब रहते थे जो हर समय अपने पास नीबू और चाकू रखते थे । जब सराय में उतरा हुआ कोई भला आदमी खाना खाने बैठता तब आप चट जाकर उसकी दाल में नीबू निचोड़ देते थे जिससे वह भलमनसाहत के बिचार से आपको खाने में शरीक कर लेता था ।