नीलकण्ठ

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

नीलकंठ ^१ वि॰ [सं॰ नीलकण्ठ] [वि॰ स्त्री॰ नीलकंठी] जिसका कंठ नीला हो ।

नीलकंठ ^२ संज्ञा पुं॰

१. मोर । मयूर ।

२. एक चिड़िया । चाष पक्षी । विशेष—यह एक बित्ते के लगभग लंबी होता है । इसका कंठ और डैने नीले होते हैं । शेष शरीर का रंग कुछ ललाई लिए बादामी होता है । चोंच कुछ मोटी होती है । यह कीड़े, मकोड़े पकड़कर खाता है, इससे वर्षा और शरद, ऋतु में उड़ता हुआ अधिक दिखाई पड़ता है । विजयादशमी के दिन इसका दर्शन बहुत शुभ माना जाता है । स्वर इसका कुछ कर्कंश होता है ।

३. महादेव का एक नाम । विशेष—कालकूट विष पान करके कंठ में धारण करने के कारण शिव का कंठ कुछ काला पड़ गया इससे यह नाम पड़ा । महाभारत में यह लिखा है कि अमृत निकलने पर भी जब देवताओं ने समुद्र का मथना बंद नहीं किया तब सधूम अग्नि के समान कालकूट विष निकला जिसकी गंध से हो तीनों लोक व्याकुल हो गए । अंत में ब्रह्मा ने शिव से प्रार्थना की और उन्होंने यह कालकूट पान करके कंठ में धारण कर लिया । पुराणों में भी इसी प्रकार की कथा कुछ विस्तार के साथ है ।

४. गोरा पक्षी । चटक । (नर के कठ पर काला दाग होता है) ।

५. मूली ।

६. पियासाल ।

७. एक मधुमक्खी (को॰) ।

नीलकंठ रस संज्ञा पुं॰ [सं॰ नीलकाण्ठ रस] एक रसोषध । विशेष—इसके बनाने की विधि इस प्रकार है—पारा, गंधक, लोहा, विष, चीता, पद्मकाठ, दारचीनी, रेणुका, बायबिडंग, पिपरामूल, इलायची, नागकेसर, सोंठ, पीपल, मिर्च, हड़, आँवला, बहैड़ा और ताँबा सम भाग लेकर सबके दुगने पुराने गुड़ में मिलाकर चने के बराबर गोली बनावे । इसके सेवन से कास, श्वास, प्रमेह, हिचकी, विषम ज्वर, ग्रहणी, शोथ, पांडु, मूत्रकृच्छ इत्यादि रोग दूर होते हैं ।