नीलम
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]नीलम संज्ञा पुं॰ [फा॰ सं॰ नीलमणि] नील मणि । नीले रंग का रत्न । इंद्रनील । विशेष—नीलम वास्तव में एक प्रकार का कुरंड है जिसका नंबर कड़ाई में हीरे से दूसरा है । जो बहुत चोखा होता है उसका मोल भी हीरे से कम नहीं होता । नीलम हलके नीले से लेकर गहरे नीले रंग तक के होते हैं । अब भारतवर्ष में नीलम की खानें नहीं रह गई हैं । काश्मीर (बसकर) की खानें भी अब खाली हो चली हैं । बरमा में मानिक के साथ नीलम भी निकलता है । सिंहल द्विप और श्याम से भी बहुत अच्छा नीलम आता है । रत्नपरीक्षा संबंधी पुस्तकों में मानिक के समान नीलम भी तीन प्रकारर के कहे गए हैं । उत्तम, महानील और साधारण । महानील के संबध में लिखा है कि यदि वह सौगुने दूध में डाल दिया जाय तो सारा दूध नीला दिखाई पड़ेगा । सबसे श्रेष्ठ इंद्रनील वह है जिसमें से इंद्रधनुष की सी आभा निकले । पर ऐसा नीलम जल्दी मिलता नहीं । नीलम में पाँच बातें देखी जाती हैं—गुरुत्व, स्निग्धत्व, वर्णाढ्यत्व, पार्श्ववर्तित्व और रंजकत्व । जिसमें स्निग्धत्व होता है उसमें से चिकनाई छूटती है । जिसमें वर्णाढ्यत्व होता है उसे प्रातः काल सूर्य के सामने करने से उसमें नीली शिखा सी फूटती दिखाई पड़ती है । पार्श्ववर्तित्व गुण उस नीलम में माना जाता है जिसमें कहीं कहीं पर सोना, चाँदी, स्फटिक आदि दिखाई पड़े । जिसे जलपात्र आदि में रखने से सारा पात्र नीला दिखाई पड़ने लगे उसे रंजक समझना चाहिए । रत्न- संबंधी पुरानी पोथियों में भिन्न भिन्न रत्नों के धारण करने के भिन्न भिन्न फल लिखे हुए हैं ।