नृसिंह

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

नृसिंह संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. सिंहरूपी भगवान् विष्णु । विष्णु का चौथा अवतार । विशेष—हरिवंश में लिखा है कि सत्ययुग में दैत्यों के आदि पुरुष हिरण्यकशिपु ने घोर तप करके ब्रह्मा से वर माँग लिया कि न मैं देव, असुर, गंधर्व, नाग, राक्षस या मनुष्य के हाथ से मारा जा सकूँ, न अस्त्र, शस्त्र, वृक्ष, रौल तथा सूखे या गीले पदार्थ से मरूँ; और न स्वर्ग, मर्त्य आदि किसी लोक में या दिन, रात किसी काल में मेरी मृत्यु हो सके । इस प्रकार का वर पाकर वह दैत्य अत्यंत प्रबल हो उठा और स्वर्ग आदि छीनकर देवताओं को बहुत सताने लगा । देवता लोग विष्णु भगवान् की शरण में गए । विष्णु ने उन्हें अभयदान देकर अत्यंत भीषण नृसिंह मूर्ति धारण की जिसका आधा शरीर मनुष्य का और आधा सिंह का था । जब यह नृसिंह मूर्ति हिरण्यकशिपु के पास पहुँची तब उसके पुत्र प्रह्लाद ने कहा कि यह मूर्ति 'देवी है, इसके भीतर सारा चराचर जगत् दिखाई पड़ता है । जान पड़ता है, अब दैत्यकुल नष्ट होगा । यह सुनकर हिरण्यकशिपु ने अपने दैत्यों से नृसिंह को मारने के लिये कहा । पर जितने दैत्य मारने गए सब नष्ट हुए । अंत में हिरर्णकशिपु आप उठकर युद्ध करने लगा । हिरण्यकशिपु क े क्रुद्ध नेत्रों की ज्वाला से समुद्र का जल खलबला उठा, सारी पृथ्वी डाँवाडोल हुई और लोकों में हाहाकार मच गया । देवताऔं का आर्तनाद सुन नृसिंह भगवान् अत्यंत भीषण गर्जन करके दैत्य पर झपटे और उन्होंने उसका पेट फाड़ डाला । भागवत और विष्णु पुराण मे सब कथा तो यही है पर प्रह्लाद की भक्ति का प्रसग अधिक है । भागवत में लिखा है कि हिरण्यकशिपु वर पाकर बहुत प्रबल हुआ और स्वर्ग आदि लोकों को जीतकर राज्य करने लगा । उसके चार पुत्र थे जिनमें प्रह्लाद विष्णु भगवान् का बड़ा भारी भक्त था । शुक्राचार्य का पुत्र दैत्यराज के पुत्रों को पढ़ाता था । एक दिन हिरण्यकशिपु ने परीक्षा के लिये सब पुत्रों को अपने सामने बुलाया और कुछ सुनाने के लिये कहा । प्रह्लाद, विष्णु भगवान् की महिमा गाने लगा । इसपर दैत्यराज बहुत बिगड़ा । क्योंकि वह विष्णु का घोर द्वेषी था । पर बिगड़ने का कुछ भी फल नहीं हुआ । प्रह्लाद की भक्ति दिन पर दिन अधिक होती गई । पिता के द्वारा अनेक ताड़न और कष्ट सहकर भी प्रह्लाद भक्ति पर दृढ़ रहे । धीरे धीरे बहुत से सहपाठी बालकों का दल प्रह्लाद का अनुपायी हो गया । इसपर दैत्यराज ने कुपित होकर प्रह्लाद से पूछा कि 'तू किसके बल पर इतना कूदता है ? प्रह्लाद ने कहा 'भगनान् के, जिसके बल पर यह सारा संसार चल रहा है' । हिरण्यकशिपु ने पूछा 'तेरा भगान् कहाँ है' प्रह्लाद ने कहा वह सदा सर्वत्र रहता है । दैत्यराज ने दाँत पीसकर पूछा 'क्या इस खंभे में भी है ? 'प्रहलाद ने कहा 'अवश्य' । हिरण्यकशिपु खङ्ग लेकर बार बार खंभे की और देखने लगा । इतने में खभे के भीतर से प्रलय के समान शब्द हुआ और नृसिंह ने निकलकर दैत्यराज का वध किया ।

२. श्रेष्ठ पुरुष ।

३. एक रतिबंध ।

नृसिंह चतुर्दशी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] वैशाख शुक्ल चतुर्दशी । विशेष—इस तिथि को नृसिंह जी का अवतार हुआ था इससे इस दिन व्रत, पूजन, उत्सव आदि किए जाते हैं ।

नृसिंह पुराण संज्ञा पुं॰ [सं॰] एक उपपुराण ।