नेत
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]नेत ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ नियति (= ठहराव)]
१. ठहराव । निर्धारण ।
नेत ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ नेत्र] मथानी की रस्सी । नेता । उ॰—(क) को उठि प्रात होत ले माखन को कर नेत गहै ?—सूर (शब्द॰) । (ख) नोई नेत की करो चमोटी घूँघट में डरवायो ।—सूर (शब्द॰) ।
नेत ^३ संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक गहना । उ॰—कहुँ कंकन कहुँ गिरी मुद्रिका कहुँ ताटंक कहुँ नेत ।—सूर (शब्द॰) ।
नेत ^४ संज्ञा स्त्री॰ दे॰ 'नेती' ।
नेत ^५ संज्ञा स्त्री॰ [अ॰ नीयत] दे॰ 'नीयत' । उ॰—जु पढ़े विन क्यों हूँ रह्यौ न परै तौ पढ़ौ चित मैं करि चेत सों जू । रस स्वादहि पाय बिषाद बहाय रहौ रमि कै इहि नेत सों जू ।— घनानंद, पृ॰ ४ ।
नेत ^६ संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की रेशमी चादर । उ॰—(क) पुनि गलमत्त चढ़ावा नेत बिछाई खाट । बाजत गाजत राजा आइ बैठ सुख पाट ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) पालँग पाँव कि माछै पाटा । नेत बिछाव चलै जो बाटा ।—जायसी (शब्द॰) ।