नोक
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]नोक संज्ञा स्त्री॰ [फा़॰] [वि॰ नुकीला]
१. उस ओर का सिरा जिस ओर कोई वस्तु बराबर पतली पड़ती गई हो । सुक्ष्म अग्रभाग । शंकु के आकार की वस्तु का महीन या पतला छोर । अनी । जैसे, सूई की नोक, काँटे की नोक, भाले की नोक, खूँटे की नोक, जूते की नोक । यौ॰— नोक झोंक । मुहा॰—नोक को लेना = बढ़ बढ़कर बातें करना । गर्व दिखाना । नोक दुम भागना = जी छोड़कर भागना । बेतहाशा भागना । नोक रह जाना = आन की बात रह जाना । टेक या प्रतिज्ञा का निर्वाह हो जाना । बात रह जाना । मर्यादा रह जाना । प्रतिष्ठा बनी रह जाना । नोक बनाना = बनाव सिंगार करना । रुप सँवारना ।
२. किसी वस्तु के निकले हुए भाग का पतला सिरा । किसी ओर को बढा़ हुआ पतला अग्रभाग । जैसे,—जमीन की एक नोक पानी के भीतर तक गई है ।
३. कोण बनानेवाली दो रेखाओं का संगम स्थान या बिंदु । निकला हुआ कोना । जैसे, दीवार की नोक ।
नोक झोंक संज्ञा स्त्री॰ [फा॰ नोक+ हिं॰ झोंक]
१. बनाव सिंगार । ठाटबाट । सजावट । जैसे,—कल तो वे बडी़ नोक झोंक से थिएटर देखने निकले थे ।
२. तपाक । तेज । आतंक । दर्प । जैसे, —कल तो वे बडी़ नोक झोंक से बातें करते थे । उ॰— शरद घटान की छटान सी सुगंगधार धारयो है जटान काम कीन्हों नोक झोंक के ।—रघुराज (शब्द॰) ।
३. चुभनेवाली बात । व्यंग्य । ताना । आवाजा । जैसे,—उनकी नोंक झोंक अब नहीं सुनी जाती ।
४. छेड़छाड़ । परस्पर की चोट । जैसे,—आजकल उन दोनों में खूब नोक झोंक चल रही है । क्रि॰ प्र॰— चलना ।