न्यास
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]न्यास संज्ञा पुं॰ [सं॰] [वि॰ न्यस्त]
१. स्थापना । रखना ।
२. यथास्थान स्थापन । जगह पर रखना । ठीक जगह क्रम से लगाना या सजाना ।
३. स्थापना द्रव्य । किसी की वस्तु जो दूसरे के यहाँ इस विश्वास पर रखी हो कि वह उसकी रक्षा करेगा और माँगने पर लौटा देगा । धरोहर । थाती ।
४. अर्पण ।
५. त्याग ।
६. संन्यास ।
७. पूजा की तांत्रिक पद्धति के अनुसार देवता के भिन्न अंगो का ध्यान करते हुए मंत्र पढ़कर उनपर विशेष वर्णों भा स्थापन । यौ॰—अंगन्यास । करन्यास ।
८. किसी रोग या बाधा की शांति के लिये रोगी या बाधाग्रस्त मनुष्य के एक एक अंग पर हाथ ले जाकर मंत्र पढ़ने का विधान ।
९. काशिका वृत्ति (को॰) ।
१०. निशान । चिह्न (को॰) ।
११. आवाज या ध्वनि का मंद करना (को॰) ।
१२. अंकन । चित्रण (को॰) ।