पंगु

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पंगु ^१ वि॰ [सं॰ पङ़्गु] जो पेर से चल न सकता हो । लँगड़ा । उ॰—(क) मूक होइ बाचाल पंगु चढे़ गिरिवर गहन । जासु कृपा सो दयाल, द्रवो सकल कलिमल दहन ।—मानस, १ ।१ (ख) मति भारति पंगु भई जो निहारि बिचारि फिरी उपमा न पवै ।—तुलसी (शब्द॰) ।

पंगु ^२ संज्ञा पुं॰

१. शनैश्चर ।

२. एक रोग । यह मनुष्य पैरों में और जाँघों की मे होता है । विशेष—यह बात रोग का भेद है । वैद्यक का मत है कि कमर में रहनेवाले वायु जोघों की नसों को पकड़कर सिकोड़ देती है जिससे रोगी के पैर सिकुड़ जाते है और वह चल फिर नहीं सकता ।

३. एक प्रकार का साधु जो भिक्षा वा मलमूत्रोत्सर्ग के अतिरिक्त अपने स्थान से उठकर किसी और काम के लिए दिन भर मे एक योजन से बाहर नहीं जाता ।