पंजर

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पंजर संज्ञा पुं॰ [सं॰ पञ्जर]

१. शरीर का वह कड़ा भाग जो अणुजीवों तथा बिना रीढ़ के और क्षुद्र जीवों में कोश या आवरण आदि के रूप में ऊपर होता है और रीढ़वाले जीवों में कड़ी हड्डियों के ढाँचे के रूप में भीतर होता है । हड्डियों का ठट्टर या ढाँचा जो शरीर के कोमल भागों को अपने ऊपर ठहराए रहता है अथवा बंद या रक्षित रखता है । ठठरी । अस्थिसमुदाय । कंकाल ।

२. पसलियों से बना हुआ परदा । ऊपरी धड़ (छाती) का हड्डियों का घेरा । पार्श्व, वक्षस्थल आदि की अस्थिपंक्ति । उ॰—जान जान कीने जो तैं नेहिन ऊपर वार । भरे जो नैन कटाच्छ के खंजर पंजरफार ।— रसनिधि (शव्द॰) ।

३. शरीर । देह ।

४. पिंजड़ा । उ॰— पंजर भग्न हुआ, पर पक्षी अब भी अटक रहा है आर्ष ।— साकेत, पृ॰ ३९६ । यौ॰—पंजरशुक = पालतू तोता । पालतू सुग्गा । पिंजड़े में पालित सुग्गा ।

५. गाय का एक संस्कार ।

६. कलियुग ।

७. कोल कंद ।

पंजर । उ॰—झुर झुर माँजर धन भई बिरह की लागी आग ।—जायसी (शब्द॰) ।