पंथ
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]पंथ ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ पन्थ]
१. मार्ग । रास्ता । राह । उ॰—(क) बरनत पंथ विविध इतिहासा । विश्वनाथ पहुँचे कैलास ।— मानस, १ । ५८ । (ख) जो न होत अस पुरुष उँजारा । सूझि न परत पंथ अँधियारा ।—जायसी (शब्द॰) (ग) बिरहिन कभी पंथ सिर पंथी पूँछै धाय । एक शब्द कहो पीव का कब रे मिलैंगे आय ।—कबीर (शब्द॰) ।
२. आचार- पद्धति । व्यवहार का क्रम । चाल । रीति । व्यवस्था । यौ॰—कुपंथ । उ॰—रघुबंसिन्ह कर सबज सुभाऊ । मनु कुपंथ पगु धरैं न काऊ ।—मानस, १ । २३१ । सुपंथ । मुहा॰—पंथ गहना = (१) रास्ता पकड़ना । चलने के लिये रास्ते पर होना । चलना । उ॰—बिछुरत प्रान पयान करेंगे रहौ आजु पुनी पंथ गहौ ।—सुर (शब्द) । (२) चाल पकड़ना । ढंग पर चलना । विशेष प्रकार के कर्म में प्रवृत्त होना । आचरण ग्रहण करना । पंथ करना = दे॰ 'पंथ गहना उ॰— क्रम क्रम ढोला पंथ कर, ढाण म चूके ढाल ।—ढोला॰, दू॰ ४४० । पंथ दिखाना = (१) रास्ता बाताना । (२) धर्म या आचार की रीति बताना । उपदेश देना । उ॰—गुरु सेवा येइ पथ दिखावा । बिनु गुरु जगत् को निर्गुन पावा ?—जायसी (शब्द॰) । पंथ देखाना या निहारना = रास्ता देखाना । बाट जोहना । प्रतिक्षा करना । इंतजार करना । उ॰—(क) तुमरो पंथ निहारौं स्वामी, कबहिं मिलौगे अंतर्जामी ।—सूर (शब्द॰) । (ख) माखन खाव लाल मेरे आई । खेलत आज अबार लगाई ।......मैं बैठी तुम पंथ निहारौं । आवो तुम पै तम मन वारौं ।—सुर (शब्द॰) । पंथ न सूझना = रास्ता म देखाई पड़ना । उ॰—आगे चलो पंथ नहिं सूझै पीछे दोष लगावै ।—कबीर सा॰ सं॰, पृ॰ ४९ । पंथ में या पंथ पर पाँव देना = (१) चलना । चलने के लिये पैर उठाना या बढ़ाना । (२) रीति या ढंग पर चलना । विशेष प्रकार के कर्मों में प्रक्तृ होना । आचरण ग्रहण करना । जैसे,—भूल कर भी बुरे पंथ मे पाँव न देना । पंथ पर लगना = (१)
पंथ ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ पथ्य] वह हल्का भोजन जो रोगी को लंघन या उपवास के पीछे शरीर कुछ स्वस्थ होने पर दिया जाता है । जैसे, मूँग की दाल आदि ।