पकड़

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पकड़ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ प्रकृष्ट, प्रा॰ पक्कड़]

१. पकड़ने की क्रिया या भाव । धरने का काम । ग्रहण । जैसे,—तुम उसकी पकड़ से नहीं छूट सकते । यौ॰—धर पकढ़ । मुहा॰—पकड़ में आना = (१) पकड़ा जाना । गृहीत होना । मिलना । हाथ लगना । (२) दाँव पर चढ़ना । घात में आना । वश में होना ।

२. पकड़ने का ढंग ।

३. लड़ाई या कुश्ती आदि में एक एक बार आकार परस्पर गुथना । भिड़ंत । हाथापाई । जैसे,— (क) हमारी तुम्हारी एक पकड़ हो जाय । (ख) वह कई पकड़ लड़ चुका है ।

४. दोष, भूल आदि ढूँढ़ निकालने की क्रिया या भाव । जैसे,—उसकी पकड़ बड़ी जबरदस्त है, उसने कई जगह भूलें दिखाई । उ॰— जहाँ शब्दों की ही पकड़ है और बात बात में वितर्क होता है वहाँ निश्चित रूप से किसी सिद्धांत का संक्षिप्तीकरण सुलभ नहीं ।—रस क॰, पृ॰ २४ ।

५. रोक । अवरोध । बंधन । उ॰—इतना न चमत्कृत हो बाले ! अपने मनका उपकार करो । मैं एक पकड़ हूँ जो कहती ठहरो वुछ सोच विचार करो ।—कामायनी, पृ॰ १०० ।

६. समझ ।

७. किसी राग का परिचायक स्वरग्राम ।

पकड़ धकड़ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ पकड़] दे॰ 'धर पकड़' ।