पख

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पख संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ पक्ष, प्रा॰ पक्ख]

१. वह बात जो किसी बात के साथ जोड़ दी जाय और जिसके कारण व्यर्थ कुछ और श्रम या कष्ट उठाना पड़े । ऊपर से व्यर्थ बढ़ाई हुई बात । तुर्रा । जैसे,—मैं आऊँगा अवश्य पर साथ में लाने की पख न लगाइए । क्रि॰ प्र॰—लगना ।—लगाना ।

२. ऊपर से बढ़ाई शर्त । बाधक नियम । अड़ंगा । जैसे,—इम्तहान की पख न होती तो ये उस जगह पर हो जाते ।

३. झगड़ा । बखेड़ा । झंझट । हैरान करनेवाली बात । जैसे,—तुमने मेरे पीछे अच्छी पख लगा दी है यह रुपयों के लिये बराबर मुझे घेरा करता है । क्रि॰ प्र॰—करना ।—फैलाना ।—मचाना ।

४. दोष । त्रुटि । नुक्स । जैसे,—वे इस हिसाब में यह पख निकालेंगे कि इसमें अलग अलग ब्योरा नहीं है ।