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पञ्च

विक्षनरी से

प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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पंच ^१ वि॰ [सं॰ पञ्चन्] पाँच । जो संख्या में चार से एक अधिक हो । यौ॰—पंचपात्र । पंचानन । पंचामृत । पंचशर । पंचेंद्रिय । पंचअसनान = सत्य, शील, गुरु के वचन का पालन, शिक्षा देना, और दया करना ये पाँच प्रकार के स्नान ।— गोरख॰, पृ॰ ७६ ।

पंच संज्ञा पुं॰

१. पाँच या अधिक मनुष्यों का समुदाय । समाज । जनसाधारण । सर्वसाधारण । जनता । लोक । जैसे,—पंच कहैं शिव सती विवाह । पुनि अवड़ेरी नरायनि ताही ।— तुलसी (शब्द) । (ख) साँई तेली तिलन सो कियो नेह निर्वाह । छाँटि पटकि ऊजर करी दई बड़ाई ताहि । दई बड़ाई ताहि /?/ सिगरे जानी । दै कोल्हू मे पेरि करी एकतर घानी ।—गिरिधर (शब्द) । मुहा॰—पंच की भीख = दस आदमियों का अनुग्रह । सर्वसाधारण की कृपा । सबका आशीर्वाद । उ॰—और ग्वाल सब गृह आए गोपालहि बेर भई ।....... राज करैं वे धेन तुम्हारी नँदहि कहति सुनाई । पंच की भीख सूर बलि मोहन कहति जशोदा माई ।—सूर (शब्द) । पंच की दुहाई =

३. पाँच वा अधिक अदमियों का समाज जो किसी भगड़े या मामले को निबटाने के लिये एकत्र हो । न्याय करनेवाली सभा । क्रि॰ प्र॰—बुलाना । यौ॰—सरपंच । पंचनामा । मुहा॰—(किसी को) पंच मानना या वदना = झगड़ा निबटाने के लिये किसी को नियत करना । झगड़ा निबटानेवाला स्वीकार करना । उ॰—दोनों ने मुझे पच माना ।— शिव- प्रसाद (शब्द॰) । वह जो फौजदारी के दोर के मुकदमें में दौरा जज की अदालत में मुकदमे के फैसले में जज की सहायता के लिये नियत हो ।

५. दलाल । (दलाल) ।

६. किसी विषय विशेष में मुख्यता प्राप्त करनेवाला व्यक्ति ।

पंच ^२ वि॰ [सं॰ पञ्च] विस्तृत । फैला हुआ ।