पट

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पट

हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पट ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. वस्त्र । कपड़ा ।

२. पर्दा । चिक । कोई आड़ करनेवाली वस्तु । क्रि॰ प्र॰—उठाना ।—खोलना ।—हटाना ।

३. लकड़ी धातु आदि का वह चिकना चिपटा टुकड़ा या पट्टी जिसपर कोई चित्र या लेख खुदा हुआ हो । जैसे, ताम्रपट ।

४. कागज का वह टुकड़ा जिसपर चित्र खींचा या उतारा जाय । चित्रपट । उ॰—लौटी ग्राम बधू पनघट से, लगा चितेरा अपने पट से ।—आराधना॰ पृ॰ ३७ ।

५. वह चित्र जो जगन्नाथ, बदरिकाश्रम आदि मंदिरों से दर्शनप्राप्त यात्रियों को मिलता है ।

६. छप्पर । छान ।

७. सरकंड़े आदि का बना हुआ वह छप्पर जो नाव या बहली के ऊपर डाल दिया जाता है ।

८. चिरौंजी का पेड़ । पियार ।

९. कपास ।

१०. गंधतृण । शरवान ।

११. रेशम । पट्ट । यौ॰—पटबसतर = पट्टवस्त्र । पट्टांशुक । रेशमी वस्त्र । उ॰— नहाते त्रिकाल रोज पंडित अचारी बड़े, सदा पटबस्तर सूत अंग ना लगाई है ।—पलटू॰, भा॰ २, पृ॰ १०९ ।

पट ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ पट्ट]

१. साधारण दरवाजों के किवाड़ । क्रि॰ प्र॰—उघड़ना ।—खुलना ।—खोलना ।—देना ।—बंद करना ।—भिड़ाना ।—भेड़ना ।

पट ^३ संज्ञा पुं॰ [देश॰]

१. टाँग । मुहा॰—पट धुसना = दे॰ 'पट लेना' । पट लेना = पट नामक पेंच करने के लिये जोड़ की टागें अपनी और खींचना ।

२. कुश्ती का एक पेंच जिसमें पहलवान अपने दोनें हाथ जोड़ की आखों की तरफ इसलिऐ बढ़ाता है कि वह समझे के मेरी आखों पर थप्पड़ मारा जायगा और फिर फुरती से झुककर उसके दोनों पैर अपने सिर की और खींचकर उसे उठा लेता और गिराकर चित कर देता है । यह पेंच और भी कई प्रकार किया जाता है ।

पट ^४ वि॰ ऐसी स्थिति जिसमें पेट भूमि की और हो और पीठ आकाश की और । चित का उलटा । औंधा । मुहा॰—पट पड़ना = (१) औधा पड़ना । (२) कुश्ती में नीचे के पहलवान का पेट के वल पड़कर मिट्टी थामना । (३) मंद पड़ना । धीमा पड़ना । न चलना । जैसे—रोजगार पट पड़ना, पासा पट पड़ना, आदि । तलवार पट पड़ना = तलवार का औंधा गिरना । उस और से न पड़ना जिधर धार हो ।

पट ^५ क्रि॰ वि॰ चट का अनुकरण । तुरंत । फोरन । जैसे, चट मँगनी पट ब्याह ।

पट ^६ [अनु॰] किसी हलकी छोटी वस्तु के गिरने से होनेवाली आवाज । टप । जैसे, पट पट बुँदे पड़ने लगीं । विशेष—खटपट, धमधम आदि अन्य अनुकरण शब्दो के समान इसका प्रयोग भी 'से' विभक्ति के साथ क्रियाविशेषण- वत् ही होता है । संज्ञा की भाँति प्रयोग न होने के कारण इसका कोई लिंग नहीं माना जा सकता ।

पट ^२ वि॰ [सं॰] मुख्य । प्रधान ।