पटकना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पटकना ^१ क्रि॰ स॰ [सं॰ पतन + करण या अनु॰]

१. किसी वस्तु को उठाकर या हाथ में लेकर भूमि पर जोर से डालना या गिराना । जोर के साथ ऊचाई से भूमि की ओर झोंक देना । किसी चीज को झोंके के साथ निचे की ओर गिरना । जैसे, हाथ का लोटा पटक देना, मेज पर हाथ पटकना ।

२. किसी खड़े या बैठे व्यक्ति को उठाकर जोर से निचे गिराना । दे मारना । उ॰—पुनि नल नीलहिं अवनि पछारेसि । जहँ तहँ पटकी भट मारेसि—तुलसी (शब्द॰) । संयो॰ क्रि॰—देना । विशेष—'पटकना' में ऊपर से नीचे की और झोंका देने या जोर करने का भाब प्रधान है । जहाँ बगल से झोंका देकर किसी खड़ी या ऊपर रखी चीज को गिरावें वहाँ ढकेलना या गिराना कहेंगे । मुहा॰—(किसी पर, किसी के ऊपर या किसी के सिर) पटकना = कोई ऐसा काम किसी के सुपुर्द करना जिसे करने की उसकी इच्छा न हो । किसी के बार बार इनकार करने पर भी कोई काम उसके गले मढ़ देना । जैसे, भाई तुम यह काम मेरे ही सिर क्यों पटकते हो । किसी और को क्यों नहीं ढ़ुढ़ लेते ।

२. कुश्ती में प्रतिद्वंद्वि को पछाड़ना, गिरा देना या दे मारना । जैसे,—मैं उन्हे तीन बार पटक चुका ।

पटकना † ^२ क्रि॰ अ॰

१. सूजन बैठना या पटकना । वरम या आमास का कम होना ।

२. गेहुँ, चने, धान आदि का सील या जल से भीगकर फिर सुखकर सिकुड़ना । विशेष—ऐसी स्थिति को प्राप्त होने के पश्चात् अन्न में बीजत्व नहीं रह जाता । वह केवल खाने के काम में आ सकता हैं, बोने के नहीं ।

३. पट शव्द के साथ किसी चीज का दरक या फट जाना । जैसे,—हाँड़ी पटक गई ।