पटरा

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पटरा संज्ञा पुं॰ [सं॰ पट्ट + हिं रा (प्रत्य॰) अथवा सं॰ पटल] [स्त्री॰ अल्पा॰ पटरी]

१. काठ का लंबा चौकोर और चौरस चीरा हुआ हुआ टुकडा़ जो लंबाई चौड़ाई के हिसाब से बहुत कम मोटा हो । तख्ता । पल्ला । विशेष—काठ के ऐसे भारी टुकडे़ को जिसके चारो पहल बराबर या करीब बराबर हों अथवा जिसका घेरा गोल हो 'कुंदा' कहेंगे । कम चौडे़ पर मोटे लंबे टुकडे़ को 'बल्ला' या बल्ली कहेंगे । बहुत ही पतली बल्ली को छड़ कहेंगे । मुहा॰—पटरा कर देना = (१) किसी खडी़ चीज को गिराकर पटरी की तरह जमीन के बराबर कर देना । (२) मनुष्य, वृक्ष आदि को काटकर गिरा देना । मार काट कर फैला । देना या बिछा देना । जैसे,—शाम तक उसने सारे का सारा जंगल काट कर पटरा कर दिया । (३) चौपट कर देना । तबाह कर देना । सर्वनाश कर देना । जैसे,—इस वर्ष के अकाल ने तो पटरा कर दिया । पटरा होना = मरकर गिर जाना । मर जाना । नष्ट हो जाना । स्वाहा हो जाना । जैसे,—इस साल हैजे से हजारों पटरा हो गए ।

२. धोबी का पाट ।

३. हेंगा । पाटा । मुहा॰—पटरा फेरना = किसी के घर को गिराकर जुते हुए खेत की तरह चौरस कर देना । ध्वंस कर देना । तबाह कर देना । पटरा हो जाना = मर कटकर नष्ट हो जाना ।