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पड़ाना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पड़ाना ^१ क्रि॰ स॰ [हिं॰ पड़ना का सक॰ रूप] गिराना । झुकना । दूसरे को पड़ने में प्रवृत्त करना ।

पड़ाना † ^२ क्रि॰ स॰ [हिं॰ फाड़ना का प्रे॰ रूप] फाड़ने का काम दूसरे से कराना । उ॰—कन्न पड़ाय न मुंड मुड़ाया । घरि घरी फिरत न भूकणु वाया ।—प्राण॰, पृ॰ १११ । विशेष—योगी, विशेषतः नाथपंथी अपनी दीक्षा के क्रम में हान की ललरी को चिरवाकर उसमें कुंडल पहनते हैं । इसी लिये इन योगियों को कनफटा भी कहा जाता है ।