पढ़ाना
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]पढ़ाना क्रि॰ स॰ [हिं॰ पढ़ना का प्रे॰ रूप] शिक्षा देना । पुस्तक की शिक्षा देना । अध्यापन करना । संयो॰ क्रि॰—डालना ।—देना । यौ॰—पढ़ाना लिखाना ।
२. कौई कला या हुनर सिखना । उ॰—(क) कुलिस कठोर कूर्म पीठि ते कठिन अति हठि न पिनाक काहू चपरि चढ़ायो है । तुलसी सो राम के सरोज पानि परसत टूटचो मानो बारे ते पूरारि ही पढ़ायो है ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) परम चतुर जिन कीन्हे मोहन अल्प बयस ही थोरी । बारे ते जेहि यहै पढ़ायो बुधि, बल कल बिधि चोरी ।— सूर (शब्द॰) । संयो॰ क्रि॰—डालना ।—देना ।
३. तोते, मैना आदि पक्षियों को बोलना सिखाना । उ॰—सुक सारिका जानकी ज्याए । कनक पींजरन राखि पढ़ाए ।— तुलसी (शब्द॰) । संयो॰ क्रि॰—देना ।
४. सिखाना । समझाना । उ॰—जोहि पिनाक बिन नाक किए नृप सबाही बिषाद बढ़ायो । सोइ प्रभु कर परसत टूटयो जनु हुतो पुरारी पढ़ायो ।—तुलसी (शब्द॰) ।