पणव
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प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]पणव संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. छोटा नगाड़ा ।
२. छोटा ढोल । ढोलकी । उ॰—शंख भेरी पणव मुरज ढक्का बाद धनित घंटा नाद बीच बिच गुंजरत ।—भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ २, पृ॰ ६०५ ।
३. एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में एक मगण एक नगण, एक यगण ओर अंत में एक गुरु होता है । प्रत्येक चरण में १६, १६ मात्राएँ होने के कारण यह चोपाई के भी अंतर्गत आता है । उ॰—मानौ योग कथित तैं मोरा । जीतोगे अर्जुन जी कोरा ।