पतंजलि
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]पतंजलि संज्ञा पुं॰ [सं॰ पतञ्जालि]
१. एक प्रसिद्ध ऋषि जिन्होंने योग सूत्र की रचना की ।
२. एक प्रसिद्ध मुनि जिन्होंने पणिनीय सूत्रों और कात्यायन कुत उनके वार्तिक पर 'महाभाष्य' नामक बृहद् भाष्य का निर्माण किया था । एक किंवदंती के अनुसार चरक संहिता के रचयिता और संगृहीता के रूप में पतंजलि का नाम लिया जाता है, पर यह मत ऐतिहासिकों को मान्य नहीं हैं । विशेष—इनकी माता का नाम गोणिका और जन्मस्थान गोनर्द्द था । डा॰ सर रामकृष्ण भांडारकर के मत से आधुनिक गोंडा ही प्राचीन गोनर्द्द है । गोणिकापुत्र, गोनर्द्दीय आदि इनके नाम मिलते हैं । ऐसा प्रसिद्ध है कि ये कुछ समय तक काशी में भी रहे थे । जिस स्थान पर इनका रहना माना जाता है उसे आजकल नागकुआँ कहते हैं । नागपंचमी के दिन वहाँ मेला होता है और बहुत से संस्कृत के पंडित और छात्र वहाँ एकत्र होकर व्याकरण पर शास्त्रार्थ करते हैं । ये अनंत भगवान् अथवा शेषनाग के अवतार माने जाते हैं । अन्य सभी सूत्रग्रंथों की व्याखाएँ भाष्य कहीं गई है, केवल पतंजलिकृत भाष्य को महाभाष्य की संज्ञा और प्रतिष्ठा मिली । बहुत से लोग दर्शनकार पतंजलि और भाष्यकार पतंजलि को एक ही व्यक्ति मानते हैं । परंतु यह मत विवादास्पद और अनिर्णीत हैं । योग सूत्रकार पतंजलि भाष्यकार पतंजलि से बहुत पूर्व के माने गए हैं । महाभाष्य के रचनाकाल से सैकड़ों वर्ष पहले कात्यायन ने पणिनीय सूत्रों पर अपना वार्तिक बनाया था । कहते हैं कि उसमें योगसूत्रकार पतंजलि का उल्लेख हैं । कात्यायन के वार्तिक पर पतंजलि का भाष्य है । इस आधार पर कहा जाता है कि योग सूत्रकार पतंजलि महाभाष्यकार पतंजलि से पहले के हैं । उनका समय भी निश्चित हो चुका है । वे शुगवंश के संस्थापक पुष्यमित्र के समय में वर्तमान थे । मौर्य राजा को मारकर जव पुष्यमित्र राजा हुआ तब उसने पाटलिपुत्र में अश्वमेध यज्ञ किया । इस यज्ञ में पतंजलि जी ने भी भाग लिया था ।