पथरी
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]पथरी संज्ञा पुं॰ [हिं॰ पत्थर + ई (प्रत्य॰)]
१. कटोरे या कटोरी के आकार का पत्थर का बना हुआ कोई पात्र ।
२. एक प्रकार का जिसमें मुत्राशय में पत्थर के छोटे बड़े कई टुकड़े उत्पन्न हो जाते हैं । विशेष—ये टुकड़े मूत्रोत्सर्ग में बाधक होते हैं जिसके कारण बहुत पीड़ा होती है और मूत्रेंद्रिय में कभी कभी घाव भी हो जाते है । मूत्राशय के अतिरिक्त यह रोग कभी कभी गले, फेफड़े और गुरदे में भी होता है ।
३. चकमक पत्थर जिसपर चोट पड़ने से तुरंत आग निकल आती है ।
४. पत्थर का वह टुकड़ा जिसपर रगड़कर उस्तरे आदि की धार तेज करते हैं । सिल्ली ।
५. कुरड़ पत्थर जिसके चुर्ण को लाख आदि में मिलाकर औजार तेज करने की सान बनाते हैं ।
६. पाक्षियों के पेट का वह पिछला । भाग जिसमें अनाज आदि के बहुत कड़े दाने जा कर पचते हैं । पेट का यह भाग बहुत ही कड़ा होता हैं ।
७. एक प्रकार की मछली ।
८. जायफल की जाती का एक बृक्ष । विशेष—यह वृक्ष कोंकण और उसके दक्षिण प्रांत के जंगलों में होता है । इस वृक्ष की लकड़ी साधारण कड़ी होती है और इमारत बनाने के काम में आती है । इसमें जायफल से मिलते जुलते फल लगते हैं जिन्हें उबालने या पेरने से पीले रंग का तेल निकलता है । यह तेल औषध के काम में भी आता है और जलाने के काम में भी ।