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परमाणुवाद

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

परमाणुवाद संज्ञा पुं॰ [सं॰] न्याय और वैशेषिक का यह सिद्धांत कि परमाणुओं से जगत् सृष्टि हुई है । विशेष—वैशेषिक और न्याय दोनों पृथ्वी आदि चार महाभूतों की उत्पत्ति चार प्रकार के परमाणुओं के योग से मानते हैं (दे॰ परमाणु) । जिस परमाणु में जो गुण होते हैं वे उससे बने हुए पदार्थो में भी होते हैं । पृथ्वी, वायु इत्यादि के परमाणुओं के योग से बने हुए पदार्थ जो नाना रूप रंग और आकृति के होते हैं वह इस कारण कि भिन्न भिन्न भूतों द्वयणुकों या त्रसरेणुकों का सन्निवेश और संघटन तरह तरह का होता है । दूसरी बात यह है कि तेज के संबंध से वस्तुओं के गुणों में फेरफार हो जाता है । जैसे, कच्चा घड़ा पकाए जाने पर लाल हो जाता है । इसके संबंध में वैशेषिकों की यह धारणा है कि आँवें में जाकर अग्नि के प्रभाव से घड़े के टुकड़े टुकड़े हो जाते हैं; अर्थातू उसके परमाणु अलग अलग हो जाते हैं । अलग होने पर प्रत्येक परमाणु तेज के योग से रंग बदलकर लाल हो जाता है । फिर जब सब अणु जुड़कर फिर घड़े रूप में हो जाते हैं तब घड़े का रंग लाल निकल आता है । वैशेषिक कहते हैं कि आँवे में जाकर घड़े का एक बार नष्ट होकर फिर बन जाना इतने सूक्ष्म काल में होता है कि हम लोग देख नहीं सकते । इसी विलक्षण मत को 'पीलुपाक मत' कहते हैं । नैयायिकों का मत इस विषय में ऐसा नहीं हैं । वे कहते हैं कि इस प्रकार अदृश्य नाश और उत्पत्ति मानने की कोई आवश्यकता नहीं, केयोंकि सब वस्तुओं में परमाणुओं या द्वयणुकों का संयोग इस प्रकार का रहता है कि उनके बीच बीच में कुछ अवकाश रह जाता है । इसी अवकाश में भरकर अग्नि का तेज अणुओं का रंग बदलता है । वेदांत में नैयायिकों और वैशेषिकों के परमाणु- वाद का खंडन किया गया है ।