परि

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

परि ^१ उप॰ [सं॰] एक संस्कृत उपसर्ग जिसके लगने से शब्द में इन अर्थों की वृद्धि होती है ।

१. चारों ओर । जैसे, परिक्रमण, परिवेष्टन, परिभ्रमण, परिधि ।

२. सर्वतोभाव । अच्छी तरह । जैसे, परिकल्पन, परिपूर्ण ।

३. अतिशय । जैसे, परिवर्द्धन ।

४. पूर्णता । जैसे, परित्याग, परिताप ।

५. दोषाख्यान । जैसे, परिहास, परिवाद ।

६. नियम । क्रम । जैसे, परिच्छेद ।

परि ^२ अव्य॰ [हिं॰] प्रकार । भाँति । तरह । उ॰—(क) जब सोऊँ तब जागवइ, जब जागू तब जाइ । मारू ढोलउ संमरइ, इणि परि रयण बिहाइ ।—ढोला॰, दू॰ ७६ । (ख) संग सखी सील कुल वेस समाणी पेखि कली पदमिणी परि ।—बेलि॰, दू॰ १४ ।

परि पु ^३ प्रत्य॰ [हिं॰] दे॰ 'पर' । उ॰—बदन कमल परि घूँघर केस । देखि कै गोरज छुभित सुबेस ।—नंद॰ ग्रं॰, पृ॰ ३२१ ।