परिकर

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

परिकर संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. पर्यक । पलंम ।

२. परिवार । उ॰— भव भवा सबै परिकर समेत ।—ह॰ रासो, पृ॰ ६१ ।

३. बृंद । समूह ।

४. घेरनेवालों का समूह । अनुयायियों का दल । अनुचर वर्ग । लवाजमा । उ॰—श्री बृंदाबन राज है, जुगल केलि रस धास । तहँ के परिसर आदि को, बरनत या थल नाम ।—भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ ३, पृ॰ ६४७ ।

५. समारंभ । तैयारी ।

६. कमरबंद । पट्टका । उ॰—मृग बिलोकि कटि परिकर बाँधा । करतर चाप रुचिर सर साँधा ।—मानस, ३ ।२७ ।

७. विवेक ।

५. एक अर्थालंकार जिसमें अभिप्राय भरे हुए विशेषणों के साथ विशेष्य आता है । जैसे,— हिमकरबदनी तिय निरखि पिय दृग शीतल होय ।

९. नाटक में भावी घटनाओं का संक्षेप में सूचन जिसे बीज कहते हैं (को॰) ।

१०. कार्य में सहायक । सहकर्मी (को॰) ।

११. फैसला । निर्णय (को॰) ।