परिसङ्ख्या
हिन्दी[सम्पादन]
प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]
शब्दसागर[सम्पादन]
परिसंख्या संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ परिसड़ख्या]
१. गणना । गिनती ।
२. एक अर्थालंकार जिसमें पूछी या बिना पूछी हुई बात उसी के सदृश दूसरी बात को व्यंग्य या वाच्य से वर्जित करने के अभिप्राय से कही जाय । यह कही हुई बात और प्रमाणों से सिद्ध विख्यात होती है । विशेष—परिसंख्या अलंकार दो प्रकार का होता है—प्रश्नपूर्वक और बिना प्रश्न का । उ॰—(क) सेव्य कहा ? तट सुरसरित, कहा ध्येय ? हरिपाद । करन उचित कह धर्म नित चित तजि सकल विषाद । (प्रश्नपूर्वक) । इसमें 'सेव्य क्या है' ? आदि प्रशनों के जो उत्तर दिए गए हैं उनमें व्यंग्य से 'स्त्री आदि सेव्य नहीं' यह बात भी सूचित होती है । (ख) इतनोई स्वारथ बड़ो लहि नरतनु जग माहिं । भक्ति अनन्य गोविंद पद लखहि चराचर ताहिं ।
३. मीमांसा दर्शन में वह विधान जिससे विहित के अतिरिक्त अन्य का निषेध हो ।