पर्यायोक्ति

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पर्यायोक्ति संज्ञा स्त्री॰ [सं॰] वह शब्दालंकार जिसमें कोई बात साफ साफ न कहकर कुछ दूसरी वचनरचना या घुमाव फिराव से कही जाय, अथवा जिसमें किसी रमणीय मिस या व्याज से कार्यसाधन किए जाने का वर्णन हो । जैसे, (क) लोभ लगे हरि रूप के करी साँट जुरि जाय । हौं इन बेची बीचही लोयन बुरी बलाय ।— बिहारी (शब्द॰) । यहाँ यह न कहकर कि मैं कृष्ण के प्रेम से फाँसी हूँ यह कहा गया है कि इन आँखों ने मुझे कृष्ण के हाथ बेच दिया । (ख) भ्रमर कोकिल मान रसाल पै, करत मंजुल शब्द रसाल हैं । बन प्रभा वह देखन जात हौं, तुम दोऊ तब लौं इन ही रहौ । यहाँ नायक और नायिका को अवसर देने के लिये सखी बहाने से टल जाती है ।