पलटना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]पलटना ^१ क्रि॰ अ॰ [सं॰ प्रलोठन अथवा प्रा॰ पलोठन] किसी वस्तु की स्थिति उलटना । ऊपर के भाग का नीचे या नीचे के भाग का ऊपर हो जाना । उलट जाना । (क्व॰) ।
२. अवस्था या दशा बदलना । किसी दशा की ठीक उलटी या विरुद्ध दशा उपस्थित होना । बुरी दशा का अच्छी में या अच्छी का बुरी में बदल जाना । आमूल परिवर्तन हो जाना ।
पलटना ^२ क्रि॰ स॰
१. किसी वस्तु की स्थिति को उलटना । किसी वस्तु के निचले भाग को ऊपर या ऊपर के भाग को नीचे करना । उलटी वस्तु को सीधी या सीधी को उलटी करना । उलटना । औंधाना । जैसे,— (किसी बरतन आदि के लिये) अच्छी तरह तो रखा था, तुमने व्यर्थ ही पलट दिया । संयो॰ क्रि॰—देना ।
२. किसी वस्तु की अवस्था उलट देना । किसी वस्तु को ठीक उसकी उलटी दशा में पहुँचा देना । अवनत को उन्नत या उन्नत को अवनत करना । काया पलट देना । जैसे,— दो ही वर्ष में तुम्हारी प्रबंधकुशलता ने इस गाँव की दशा पलट दी । विशेष— इस अर्थ में यह क्रिया सदा 'देना' या 'डालना' के साथ संयुक्त होती है, अकेले नहीं आती ।
३. फेरना । बार बार उलटना । उ॰— देव तेव गोरी के बिलात गात बात लगै, ज्यों ज्यों सीरे पानी पीरे पाल सो पलटियत ।— देव (शब्द॰) ।
४. बदलना । एक वस्तु को त्याग कर दूसरी को ग्रहण करना । एक को हटाकर दूसरी को स्थापित करना । उ॰— मृगनैनी दृग की फरक कर उछाह तन फूल । बिन ही प्रिय आगमन के पलटन लगी दुकूल ।— बिहारी (शब्द॰) ।
५. बदलना । एक चीज देकर दूसरी लेना । बदले में लेना । बदला करना । (अप्रयुक्त) । उ॰— (क) नरतनु पाप विषय मन देहीं । पलटि सुधा ते सठ विष लेही ।— तुलसी (शब्द॰) । (ख) ब्रजजन दुखित अति तन छीन । रटत इकटक चित्र चातक श्यामघन तनु लीन । नाहि पलटत बसन भूषन दृगन दीपक तात । मलिन बदन बिलखि रहत जिमि तरनि हीन जल जात ।— सूर (शब्द॰) ।
६. कही हुई बात को अस्वीकार कर दूसरी बात कहना । एक बात को अन्यथा करके दूसरी कहना । एक बात से मुकरकर दूसरी कहना । जैसे,— तुम्हारा क्या ठिकाना, तुम तो रोज ही कहकर पलटा करते हो । पु
७. लौटाना । फेरना । वापस करना । उ॰— फिरि फिरि नृपति चलावत बात । कहो सुमंत कहौं तोहिं पलटी प्राण जीवन कैसे बन जात ।— सूर (शब्द॰) ।