पसली

विक्षनरी से


हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पसली संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ पर्शुका] मनुष्यों और पशुओं आदि के शरीर में छाती पर के पंजर की आड़ी और गोलाकार हड्डियों में से कोई हड्डी । विशेष—साधारणतः मनुष्यों और पशुओं में गले के नीचे और पेट के ऊपर हड्डियों का एक पंजर होता है । मनुष्य में इस पंजर में दोनों ओर बारह हड्डियाँ होती हैं । ये हड्डियाँ पीछे की ओर रीढ़ में जुड़ी रहती है और उसके दोनों ओर से निकलकर दोनों बगलों से होती हुई आगे छाती और पे ट की ओर आती हैं । पसलियों के अगले सिरे सामने आकर छाती की ठीक मध्य रेखा तर नहीं पहुँचते बल्कि उससे कुछ पहले ही खतम हो जाते हैं । ऊपर की सात सात हड्डियाँ कुछ बड़ी होती हैं और छाती की मध्य की हड्डी से जुड़ी रहती हैं । इसके बाद की नीचे की ओर की हड्डियाँ या पसलियाँ क्रमशः छोटी होती जाती हैं और प्रत्येक पसली का अगला सिरा अपने से ऊपरवाली पसली के नीचे के भाग से जुड़ा रहता है । इस प्रकार अंतिम या सबसे नीचे की पसली जो कोख के पास होती है सबसे छोटी होती है । नीचे की दोनों पसलियों के अगले सिरे छाती की हड्डी तक तो पहुँचते ही नहीं, साथ ही वे अपने ऊपर की पसलियों से भी जुड़े हुए नहीं होते । इन पसलियों के बीच में जो अंतर होता है उसमें मांस तथा पेशियाँ रहती हैं । साँस लेने के समय मांसपेशियों के सिकुड़ने और फैलने के कारण ये पसलियाँ भी आगे बढ़ती और पींछे हटती दिखाई देती हैं । साधारणतः इन पसलियों का उपयोग हृदय और फेफड़े आदि शरीर के भीतरी कोमल अंगों को बाहरी आघातों से बचाने के लिये होता है । पशुओं, पक्षियों और सरीसृपों आदि की पसली की हड्डियों की संख्या में प्रायः बहुत कुछ अंतर होता है और उनकी बनावट तथा स्थिति आदि में भी बहुत भेद होता है । पसली की हड्डियों की सबसे अधिक संख्या साँपों में होती है । उनमें कभी कभी दोनों ओर दो दो सौ हड्डियाँ होती है । मुहा॰—पसली फड़कना या फड़क उठना = मन में उत्साह होना । उमंग पैदा होना । जोश आना । पसलियाँ ढीली करना = बहुत मारना पीटना । हड्डी पसली तोड़ना = दे॰ 'पसलियाँ ढीली करना' । यौ॰—पसली का रोग = बच्चों का एक प्रकार का रोग जिसमें उनका साँस बहुत तेज चलता है ।