पसीजना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पसीजना क्रि॰ अ॰ [सं॰ प्र + /?/स्विद्, प्रस्विधति, प्रा॰ पसिञ्जइ]

१. किसी धन पदार्थ में मिले हुए द्रव अंश का गरमी पाकर या और किसी कारण से रस रसकर बाहर निकालना । रसना । जैसे, पत्थर में सरे पानी पसीजना ।

२. चित्त में दया उत्पन्न होना । दयार्द्र होना । जैसे,—आप लाख बातें बना- इए, पर वे कभी न पसीजेंगे । उ॰—दुखित धरनि लाखि बरसि जल घनहु पसीजे आय । द्रवत न क्यों घनश्याम तुम नाम दयानिधि पाय ।—(शब्द॰) ।