पहचान

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पहचान संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ प्रत्यभिज्ञान]

१. पहचानने की क्रिया या भाव । यह ज्ञान कि यह वही व्यक्ति या वस्तु विशेष है जिसी मैं पहले से जानता हूँ । देखने पर यह जान लेने की क्रिया या भाव कि यह अमुक व्यक्ति या वस्तु है । जैसे,—गवाह मुलजिमों की पहचान न कर सका । क्रि॰ प्र॰—करना ।—होना ।

२. भेद या विवेक करने की क्रिया या भाव । किसी के गुण, मूल्य या योग्यता जानने की क्रिया या भाव । जैसे,—(क) तुम भले बुरे की पहचान नहीं कर सकते । (ख) जवा- हिरात की पहचान जौहरी कर सकता है ।

३. पहचानते की सामग्री । किसी वस्तु से संबंध रखनेवाली ऐसी बातें जिनकी सहायता से वह अन्य वस्तुओं से अलग की जा सके । किसी वस्तु की विशेषता प्रकट करनेवाली बातें । लक्षण । निशानी । जैसे,—(क) मुझे उनके मकान की पहचान बताओ तो मौं वहाँ जा सकता हूँ । (ख) अगर वह कमीज तुम्हारी है तो इसकी कोई पहचान बताओ ।

४. पहचानने की शक्ति या वृत्ति । अंतर या भेद समझने की शक्ति । एक वस्तु को दूसरी वस्तु अथवा वस्तुओं से पृथक् करने की योग्यता । किसी वस्तु का गुण, मूल्य अथवा योग्यता समझने की शक्ति । विवेक । तमीज । जैसे,—(क) तुममें खोटे खरे की पहचान नहीं है । (ख) तुममें आदमी की पहचान नहीं हैं ।

५. जान पहचान । परिचय । (क्व॰) । जैसे,—(क) हमारी उनकी पह- चान बिलकुल नई है । (ख) तुम्हारी पहचान का कोई आदमी हो तो उससे मिलो ।