पाखण्ड

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पाखंड ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ पाखण्ड]

१. वेदाविरुद्ध आचार । उ॰— षट दरसन पाखंड छानबे पकरि किए बेगारी ।—धरम॰, पृ॰ ६२ ।

२. वह भक्ति या उपासना जो केवल दूसरों के दिखाने के लिये की जाय और जिसमें कर्ता की वास्तविक निष्ठा वा श्रद्धा न हो । ढोंग । आडंबर । ढकोसला ।

३. वह ब्यय जो किसी को धोखा देने के लिये किया जाय । बकभक्ति । छल । धोखा ।

४. नीचता । शरारत ।

५. जैन या बौद्ध (को॰) । मुहा॰—पाखंड फैलाना = किसी को ठगने के लिये उपाय रचना । बुरे हेतु से ऐसा काम करना जो अच्छे इरादे से किया हुआ जान पड़े । नजर फैलाना । ढकोसला खड़ा करना । जैसे,— (क) उस (साधु) ने कैसा पाखंड फैला रखा है । (ख) वह तुम्हारे पाखंड को ताड़ गया ।

पाखंड ^२ वि॰ पाखंड करनेवाला । पाखंडी ।