पाचन

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पाचन ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. पचाने या पकाने की क्रिया । पचाना या पकाना ।

२. खाए हुए आहार का पेट में जाकर शरीर के धातुओं के रुप में परिवर्तन । अन्न जिस रुप में वह शरीर का पोषण करता है । विशेष—दे॰ 'पक्वाशय' । यौ॰—पाचनशक्ति ।

३. वह औषध जो आम अथवा अपक्व दोष को पचावे । विशेष—पाचन औषध प्रायः काढ़ा करके दी जाती है । यह औषध १६ गुने पानी में पकाई जाती है और चौथाई रह जाने पर व्यवहार में लाई जाती है । वैद्यक में प्रत्येक रोग के लिये अलग अलग पाचन लिखा है जो कुल मिलाकर ३०० से अधिक होते हैं ।

४. प्रायशिचत्त ।

५. अम्ल रस । खट्टा रस ।

६. अग्नि ।

७. लाल एरंड ।

८. व्रण में से रक्त या मवाद निकालना (को॰) ।

९. व्रण या घाव का पुरा होना (को॰) ।

पाचन ^२ वि॰

१. पचानेवाला । हाजिम ।

२. किसी विशेष वस्तु के अजीर्ण को नाश करनेवाली औषध । विशेष—विशेष विशेष वस्तुओं के खाने से उत्पन्न अजीर्ण विशेष पदार्थों के खाने से नष्ट होता है । जो वस्तु जिसके अजीर्ण को नष्ट करती है उसे उसका पाचन कहते हैं । जैसे, कटहल का पाटन केला, केले का घी और घी का जँभीरी, नीबु पाचक है । इसी प्रकार आम और भात के अजीर्ण का दूध, दूध के अजीर्ण का अजवायन, मछली तथा मांस क े अजीर्ण का मठ्ठा पाचन है । गरम मसाला, हल्दी, हींग, सोंठ नमक आदि साधारण रीति से सभी द्रव्यों के पाचन हैं ।