पाथना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पाथना क्रि॰ स॰ [सं॰ प्रथन या हिं॰ थाप (ना) का आद्यंत विपर्यत]

१. ठोंक पीठकर सुडौल करना । गढ़ना । बनाना । उ॰—लाड़ली के बरनै को नितंबन हानि रही रसना कवि जेत के । कै नृप संभु जू मेरु की भूमि में रेत के कूर भए नदी सेत के । कै धौं तमूरन के तबला रँगि औंधि धरे करि रंभा के लेत के । कंचन कीच के पाथे मनोहर कै भरना द्वै मनोज के खेत के ।—सुंदरीसर्वस्व (शब्द॰) ।

२. किसी गीली वस्तु से साँचे के द्वारा या बिना साँचे के हाथों से पीट या दबाकर बड़ी बड़ी टिकिया या पटरी बनाना । जैसे, उपले पाथना, ईंट पाथना ।

३. किसी को पीटना । ठोंकना । मारना । जैसे,— आज इनको अच्छी तरह पाथ दिया ।