पारना

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हिन्दी[सम्पादन]

प्रकाशितकोशों से अर्थ[सम्पादन]

शब्दसागर[सम्पादन]

पारना ^१ क्रि॰ सं॰ [हिं॰ पारना (पड़ना) क्रि॰ स॰ रूप]

१. डालना । गिराना । उ॰—पारि पायन सुरन के सुर सहित अस्तुति कीन ।— भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ ३, पृ॰ ७६ ।

२. खड़ा या उठा न रहने देना । जमीन पर लंबा डालना ।

३. लोटाना । उ॰— (क) पारिगो न जाने कौन सेज पै कन्हैया को ।— (शब्द॰) । (ख) धन्य भाग तिहि रानि कौशिला छोट सूप महँ पारै ।— रघुराज (शब्द॰) ।

४. कुश्ती या लड़ाई में गिराना । पछाड़ना । उ॰— सोइ भुज जिन रण विक्रम पारै ।— हरिचंद्र (शब्द॰) ।

५. किसी वस्तु को दूसरी वस्तु में रखने, ठहराने या मिलाने के लिये उसमें गिराना या रखना ।

६. रखना । उ॰— मन न धरति मेरो कह्यो तू आपनी सयान । अहे परनि परि प्रेम की परहथ पार न प्रान ।— बिहारी (शब्द॰) । यौ॰— पिंडा पारना = पिंडदान करना । उ॰— जाय बनारस जारयो कया । पारयो पिंड नहायो गया ।—जायसी (शब्द॰) ।

७. किसी के अंतर्गत करना । किसी वस्तु या विषय के भीतर लेना । शामिल करना । उ॰— जे दिन गए तुमहिं विनु देखे । ते विरंचि जनि पारहि लेखे । तुलसी (शब्द॰) ।

८. शरीर पर धारण करना । पहनना । उ॰— श्याम रंग धरि पुनि बाँसुरी सुधारि कर, पीत पट पारि बानी मधुर सुनावैंगी ।— श्रीधर (शब्द॰) ।

९. बुरी बात घ़टित करना । अव्यवस्था आदि उपस्थित करना । उत्पात मचाना । उ॰— औरै भाँति भएब ये चौसर चंदन चंद । पति बिनु अति पारत बिपति, मारत मारू चंद ।— बिहारी (शब्द॰)

१०. साँचे आदि में डालकर या किसी वस्तु पर जमाकर कोई वस्तु तैयटार करना । जैसे, ईंटे या खपडे़ पारना, काजल पारना ।

११. सजाना । बनाना । सँवारना । उ॰— माँग भरी मोतिन सों पटियाँ नीकै पारी । नंद॰ ग्रं॰, पृ॰ ३८६ ।

पारना पु † ^२ क्रि॰ अ॰ [सं॰ पारय (=योग्य) वा हिं॰ पार, जैसे, पार लगना (= हो सकना)] सकना । समर्थ होना । उ॰— प्रभु सन्मुख कछु कहइ न पारइ । पुनि पुनि चरन सरोज निहारइ ।— तुलसी (शब्द॰) ।

पारना पु † ^३ क्रि॰ स॰ [सं॰ पालन] दे॰ 'पालना' । उ॰— नेमनि संग फिरै भटक्यो पल मूँदि सरूप निहारत क्यौं नहिं । स्या म सुजान कृपा घनआनँद प्रान पपीहनि पारत क्यों नहीं ।—घनानंद, पृ॰ १५१ ।