पावा
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]पावा † ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ पाद॰ हि॰ पावँ, पाव] चारपाई, पलँग, चौकी वैशाली से पश्चिम कुरसी आदि का पाया । दे॰ 'पाया' ।
पावा ^२ संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्राचीन और बौद्बकालीन गाँव जो वैशाली से पश्चिम और गंगा के उत्तर था । विशेष— यहाँ बुद्ब भगवान् कुछ दिन ठहरे थे ओर बुद्ब क े निर्वाण के पीछे पावा के लोगों को भी बुद्ध के शरीर का कुछ अंश मिला था जिसके ऊपर उन्होंने एक स्तूप उठाया । यह गाँव अब भी इसी नाम से जाना जाता है और गोरख- पुर जिले में गडक नदी से ६ कोस पर है । गोरखपुर से यह बोस कोस उत्तरपश्चिम पड़ता है ।
पावा संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. रस्सी, तार, ताँत, आदि के कई प्रकार के फेरों और सरकनेवाली गाँठों आदि के द्वारा बनाया हुआ घेरा जिसके बीच में पड़ने से जीव बँध जाता है और कभी कभी बंधन के अधिक कसकर बैठ जाने से मर भी जाता है । फंदा । फाँस । बंधन । जाल । विशेष— प्राचीन काल में पाश का व्यवहार युदध में होता था और अनेक प्रकार का बनता था । इसे शत्रु के ऊपर डालकर उसे बाँधते या अपनी ओर खींचते थे । अग्निपुराण में लिखा है कि पाश दस हाथ का होना चाहिए, गोल होना चाहिए । उसकी डोरी सूत, गून, मूँज, ताँत, चमडे़ आदि की हो । तीस रस्सियाँ होनी चाहीए इत्यादि । वैशंपायनीय धनुर्वेंद में जिस प्रकार के पाश का उल्लेख है वह गला कसकर मारने के लिये उपयुक्त प्रतीत होता है । उसमें लिखा है कि पाश के अवयव सूक्ष्म लोहे के त्रिकोण हों, परिधि पर सीसे की गोलियाँ लगी हों । युद्ध के अतिरिक्त अपराधियों को प्राणदंड देने में भी पाश का व्यवहार होता था, जैसे आजकल भी फाँसी में होता है । पाश द्वारा बध करनेवाले चांडाल 'पाशी' कहलाते थे जिनकी संतान आजकल उत्तरीय भारत में पासी कहलाती हैं ।
२. पशु पक्षियों को फँसाने का जाल या फंदा । विशेष— जिस प्रकार किसी शब्द के आगे 'जाल' शब्द रखकर समूह का अर्थ निकालते हैं उसी प्रकार सूत के आकार की वस्तुओं के सूचक शब्दों के आगे 'पाश' शब्द रहने से समूह का अर्थ लेते हैं, जैसे,— केशपाश । कर्ण के आगे पाश शब्द से उत्तम समझा जाता है । जैसे, कर्णपाश अर्थात् सुंदर कान ।
३. बंधन । फँसानेवाली वस्तु । उ॰— प्रभु हो मोह पाश क्यों छूटैं ।— तुलसी (शब्द॰) । विशेष— शैव दर्शन में छह पदार्थ कहे गए हैं— पति, विद्या, अविद्या, पशु, पाश और कारण । पाश चार प्रकार के कहे गए हैं— मल, कर्म, माया, ओर रोध शक्ति । (सर्वदर्शन- संग्रह) । कुलार्णव तंत्र में 'पाश' इतने बतलाए गए हैं— घृणा, शंका, भय, लज्जा, जुगुप्सा, कुल, शील और जाति । मतलब यह कि तांत्रिकों को इन सबका त्याग करना चाहिए ।
४. फलित ज्योतिष में एक योग जो उस समय माना जाता है जब सब राशि ग्रहपंचक में रहती है ।