पियार
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]पियार ^१ संज्ञा पुं॰ [ सं॰ पियाल] मझोले आकार का एक पेड़ । विशेष—देखने में यह पेड़ महुवे के पेड़ सा जान पड़ता है । पत्ते भी इसके महुवे के पत्तों से मिलते जुलते होते हैं । वसंत ऋतु में इसमें आम की सी मंजरियाँ लगती हैं जिनके झड़ने पर फालसे के बराबर गोल गोल फल लगते हैं । इन फलों में मीठे गूदे की पतली तह होती है जिसके नीचे चिपटे बीज होते हैं । इन बीजों की गिरी स्वाद में बादाम और पिस्ते के समान मीठी होती है और मेवों में गिनी जाती हैं । यह गिरी चिरौंजी के नाम से बिकती है । पियार के पेड़ भारतवर्ष भर के विशेषतः दक्षिण के जंगलों में होते हैं । हिमालय के नीचे भी थोड़ी उँचाई तक इसके पेड़ मिलते हैं पर यह विशेषतः विंध्य पर्वत के जंगलों में अधिकता से पाया जाता है । इसके धड़ में चीरा लगाने से एक प्रकार का बढ़िया गोंद निकलता है जो पानी में बहुत कुछ घुल जाता है । कहीं कहीं यह गोंद कपड़े में माड़ी देने के काम में आता है और छीपी इसका व्यवहार करते हैं । छाल और फल अच्छे वारनिश का काम दे सकते हैं । इसकी लड़की उतनी मजबूत नहीं होती पर लोग उससे खिलौने, मुठिया और दरवाजे के चौखट आदि भी बनाते हैं । पत्तियाँ चारे के काम में आत ी हैं । इस वृक्ष के संबंध में यह समझ रखना चाहिए कि यह जंगलों में आपसे आप उगता है, कहीं लगाया नहीं जाता । इसे कहीं कहीं अचार भी कहते हैं ।
पियार † ^२ वि॰ [हिं॰] दे॰ 'प्यारा' ।
पियार † ^३ संज्ञा पुं॰ दे॰ 'प्यार' ।
पियार † ^४ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ पलाल] दे॰ 'पयाल' ।